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प्रेमघन सर्वस्व

तो बुढ़ाई में कानून पढ़कर अब वकालत करनी शुरू की है। संयोग से दो मुहर्रिर भी आपको बहुत ही माकुल मिल गये है, कि जिससे आपका काम किर्स तरह चला जाता है, और वहीं मानो इन्हें अन्धे को लकड़ी हो रहे हैं। यदि वे एक दिन न रहें तो कदाचित् अापके घर उपास हो जाय, इसी से ये दोनों मानों इनकी नाक के बाल हो रहे हैं। उसमें एक तो जाति के जुलाहे मियाँ हैं, नाम उनका कहरूल्लाह खाँ हैं, जिन्हें गैवार लोग केवल कहरू मियाँ कहते हैं दूसरे जाति के कलवार हैं, जिनका नाम तो पनारू था, पर जब से वे आर्य समाज में मिल गये हैं तब से वे अपने को परम पवित्र बर्मा लिखने लगे हैं, क्योंकि आर्य समाज से इन्हें यह खिताब नाम और जाति का मिला है। इसीसे उन्होने जनेऊ पहना और साँझ सबेरे गायत्री का जप और सन्ध्या भी करते हैं। बस अापी लोग उनके अगिया कोइलिया दोनों दूत वा याजूज वा माजूज दोनों देव, वा इन्द्र[१] सभा के लालदेव और काले देव हैं, अथवा सिपाहीजादा के किस्से के अमीरा और मुनीरा दोनों ठग हैं। दोनों तीर और कमान वा आग और पानी हैं। समझावन[२] और बुझावन, बा पकड़ वा घसीटू हैं, वा एक बाज तो दूसरा शिकारी कुत्ता है। क्योंकि चाहे जो अदालत में जाय, ये उसे बिना फंसाये नहीं छोड़ते और कुछ न कुछ ले मरते हैं। बस इसी से हमारे मुन्शी जी भी वकील बने हैं। इन्हीं के कारण मुन्शी जी के घर और डेरे पर मवक्किलों की भीड़ लगी रहती है. और जो आते वे उलटे छरे से मूड़े जाते हैं। पहिले तो बिना पान लाए मुंशी जी बात ही नहीं सुनते, सो भी दो चार पैसे से कम का नहीं। मानो यह तो आपका बालभोग है। यद्यपि आप अपने को चित्रगुप्त के वंश में उत्पन्न बतलाते है, परन्तु मिहन्ताना लेने में तो आप साक्षात् यमराज बन जाते हैं। और दया शीलता और संकोच किसे कहते हैं, वे जानते ही नहीं। पहिले तो श्राप मुवक्किलों से बहुत ही सीधी रीति और चाव से मीठी-मीठी बातें करते, परन्तु जहाँ फँसा-पाते तब तो फिर आँख ही नहीं मिलाते और जब मुकदमा पेश होता है तब उन्हें बुलाने जाइये, तब तो वे बूढ़े बन बिलारों के समान घूरते, और चटखते जैसे चीता, जो नखे करने लगते तो थी मुश्तरी को भी मात कर देते और बिना कुछ टेट में खोसे उठना तो जानते ही नहीं। यदि मुकद्दमा हार गये तब तो कह दिया कि "देखिये-मैंने तो बहुत कुछ कहा,


  1. अमानत रचित उर्दू नाटक के पात्र
  2. झाड़ के जलाने और बुझाने की छड़ी