पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०१
गुप्त गोष्ठी गाथा


इन मुफ़त खोरे मुसलमानों की बदौलत बेचारे हमारे मित्र नब्बाब साहिब को भर पेट खाना भी नसीब नहीं होता क्योंकि यही सब चाट जाया करते हैं। x x x इन लोगों में से कई असहाब तो नवाब कहलाते बाकी कोई हाफिज़ कोई हाजी, कोई मुफ्ती कोई काज़ी, कोई मौल्बी और आखून, कोई मीर साहिब और खा़ँ साहिब कहलाते परन्तु हम इन सब साहियों को मुक्ती साहिब कहते हैं क्योंकि सब के सब मुक्त़ के खाना खाने वाले हैं। x x x उन्हें न सिर्फ खाना वरश्च सेरों अफीम और पन्सेरियो गाँजा और चर्स भी फूकने को चाहिए। कोई साहिब मदक और कोई चन्द्र का यम्बू में में लगाये छीटे पर छींटा उड़ाते धुँआ धक्कड़ मचाए रहते। x x x बनज़र इन्साफ कहिए तो कि वह किस दर्जे की बेजा तहरीर है। मैंने माना कि चन्द अशखास ऐसे भी हैं श। मगर क्या वे सब के सब ऐसे हैं जिनके कि आपने नाम गिना डाले हैं नाते और रिश्ते के बयान में भी आपने कुछ कम कारागरी नहीं की है। अलाहाजु लकयास बाहम एक दूसरे से जू गुफ्तगू कराई है, उसमें तो अपनी लियाकत का तो खातमा ही कर दिया है। गुया अज़खुद गाली न देकर दरपर्दः मतलब निकाला है, और इस तौर पर न मुझ से आपने सिर्फ छिपी-छिपी दिल्लगी की है, बल्कि इज़ाला हैसियत उफ़ों के लिए कुछ कम कोशिश नहीं की है। चंकि मैं अपने अकसर अहबाव के नखलि दोस्ती से ऐसे ही ऐसे, उलट समर पाता चला पाता है, लिहाज़ा कछ मसावात सी हो गई है। अगर वे लोग कैसे कुछ आजुर्दा खातिर हैं। इसके तहरीर की ज़रूरत नहों, वगौर सोचने से आप खुद समझ सकते हैं। खुलासा इसका नतीजा यह हुआ कि कई शुफ़ो को तो आप की तहरीर ने मेरा घर छुड़ा कर अपने घर पहुँचाया, जिनकी ज़ुदाई का मुझे सख्त सदमा गुज़र रहा है। बाकी व हज़ार इज्ज़ और मिन्नत समाजत ठहरे है लेकिन इस शर्त पर कि आइन्दः से सब जहाँ श्राप मेरे घर तशरीफ लाये कि वे सब के सब चल बसेंगे।

मिर्जा निकाक बख्श साहब एम॰ ए॰ और उनके हमअन ज़ियादअज़-हह कशीदःखातिर हैं, और क्यों नहीं जब की आप उनके निस्बत साफ़-साफ़ यह इर्काम फर्माएँ, कि वसशराब के दौर चलने लगे अब श्राप और भी अण्टाग़फील हो बहक चले, कि मियां सुनते हो रण्डियाँ और गाने वालियाँ व नीज़ माशूकानि महलका सब के सब आज कहाँ छिपे हैं बुलायो बुलायो जल्द बुलायो वल्लाह अब दिल को करार नहीं। बन्दा बिलकुल वे