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प्रेमघन सर्वस्व

सब हुआ जाता है। x x x ज्योंही किसी की अटखेलियों की चाल से निकली पाज़ेब और कड़े छड़े की आवाज़ कान में आई, कि आप ज़ामें से बाहर हो उठे और कहने लगे कि लिल्लाह इन्हें इजाज़त दीजिए कि मेरे संग नाचें, और मैं आप को अँगरेज़ी बाल का तमाशा दिखलाऊँगा।" बतलाइए, तो यह किस दर्जे की बेहयाई और बेइन्साफ़ी है? इलावा बरीं आप बहुत सी बातैं ऐसी लिख गये हैं कि जिन्हें आप को याद दिलाने में भी मुझे शर्म दामनगीर होती है। जियादातर मलाल इस ख्याल से और भी पैदा होता है कि आपने दोस्त कह कह कर न सिर्फ मुझे बल्कि कई शुफ़ी को ग़ायत दर्जे का बदनाम किया है। अभी चार पाँच दिन का जिक्र है कि जनाब सेठ डरपोक मल साहिब गरीब खान-इ-खाकसार पर रौनक अफ़रोज़ हुए थे, वो बहुत मग़मूम दिखलाई पड़े। बन्दे ने जो दयक्ति हाल किया तो पाहि सर्द भरकर कहने लगे कि" साहिब मैं क्या कहूँ आपके दिलीदोस्त जो नए एडिटर हुए हैं उन्हें और तो कोई बात लिखने को मिलती ही नहीं, हमी लोगों की जिससे उनकी सच्ची दोस्ती का दावा था, ऐसी धूल उड़ानी शुरू की है कि कहते ही नहीं बन पड़ती। उन्होंने खास मेरी बेइज़ती और बदनामी करने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। आदमी में जहाँ तक बुराई हो सकती है वह सब उन्होंने मुझी में बतलाई हैं। क्यों साहब? मैं हाकिमों के यहाँ जाकर सब की झूठी निन्दा कर आया करता हूँ? दमड़ी दमड़ी के लिये अदालत में झूठी गंगा-जली उठाया करता हूँ? मैं अपने देनदारों का काल हूँ? उनका हिसाब कभी नहीं चुकाता मैं भङ्गियों के सलाम का भूखा हूँ। और म्यूनिसिपल कमिश्नर केवल इसीलिये होता कि बिना कुछ दिये ही लिये घर का कूड़ा उठ जाया करे। आनरेरी मजिस्टरी इसीलिए करता कि बेकसूरों को कैद कर दिया करूँ? हाय? यह सब अखबार में छाप कर शहर शहर में बाँट दिया, जिससे शायद सब जगह से एक-बारगी मेरी साख उठ जाया चाहती है। मैंने उनको बहुत तसल्ली और तशफ़्फ़ी की, और कहा कि वह एक शायिराना खियाल का आदमी है, यों ही उसके मिज़ाज़ में ज़राफ़त और तमरखुर ज़ियादा है जिसे आप बखूबी जानते हैं। न कोई मज़मून मिला होगा, इधर ही झक पड़ा, क्या कीजिएगा और उसकी इन फ़िजूलियात व लग़वियात तहरीर को कौन पढ़ता और सुनता है। फिर काम ही क्या करते हैं। लाट साहिब से लेकर मलिका मुअज्जमा तक की तो धूल उड़ाया करते हैं। आप क्यों