पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/१४९

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बनारस का बुढ़वा मंगल

पताकाएँ फहराती साहङ्कार मानो आर्ग धर्म के अटल राज्य के प्रकर्ष प्रताप को सूचित कर रही है। अनेक सुविशाल देवालयों में प्रातःकालीन अर्चन और पूजन में बजते शङ्ख भेरी घण्टा घड़ियाल का कल तुमुल दशों दिशा में व्याप्त हो मानो हमारे सनातन धर्म की विश्व विजय बधाई सी सुनाई देती है कहीं तान पूरा मृदङ्ग और झाँक बजते कीर्तन और भजन होता, जिनके द्वारों पर भैरवी भैरवी की नौबत झड़ती मानो इस नित्य मङ्गलमय स्थल को बतला भूलों को चैतन्य करती हैं, कहीं ब्राह्मणों के लड़के वेदाध्ययन करते, उद्घोषण कर रहे हैं कि सरस्वती देवी का आश्रय स्थान अब केवल यही है। गंगा तट पर ब्राह्मण लोग संध्या बन्दन तर्पण देवाचनादि ब्रह्मकर्म करते, मानों इस कराल कलिकाल में भी धर्मको पैसा दे रहे हैं, और सामान्य द्विजाति अपने आर्य देश सत कर्म रत लखाते मानो इस तीर्थ में अद्यापि धर्मके निवास का प्रमाण सा दे रहे हैं। सामान्य जन हरहर महादेव शङ्कर पुकारते मानो जिसका राज उसकी दुहाई वाली, कहावत को चरितार्थ करते—

भगवान भूतभावन भुजङ्गभूषण का स्मरण करते, शिवालयों में जा जल चढ़ाते गाल बजाते अपने जन्म जन्मान्तर के पाप पुल को दूर बहाते जाते हैं। कहीं स्नान कर काषाय कौपीन धारी एक हाथ में गङ्गाजल पूरित कमण्डल लिये दूसरे में अपना दण्ड ऊँचा किये, दण्डी स्वामी लोग प्रशान्त भाव से अपने आश्रम को जाते, मानो "एकमेवा द्वितीयम ब्रह्म' की शिक्षा सी देते जाते। कहीं सुर सरिता के निरमल और सुशीतल सलिल में कुलवधू तुकुमारी सुमुखियाँ स्नान करती, देवताओं के मन को भी हरती, यह निश्चय कराती कि मानो चतुर चतुरानन ने काशी की गलियों में मुक्ति को यों ठोकर खाते देख उसके रक्षा के लिये इस अवरोधक कुलाहल की सृष्टि की है। जिनके सहज सलज्ज रहन सहन को देख रात भर के देखे वेश्याओं के सत्र हाव-भाव रसा-भास से अनुमान होता, और मन मान लेता, कि टीक है इसीलिये साहित्याचार्यों से यथार्थ प्रतिष्ठा स्वकीया ही नायिका को दी गई है। वे अपने बहुमूल्य वस्त्रालङ्कार और दान दक्षिणा देती स्थिर भाव से रहती हैं। एवम् निज नित्य नैमित्तिक कर्म से अवकाश पाकर मुण्ड के झएड ब्राह्मणों तथा सन्यासियों का क्षेत्रों में भोजनार्थ जाना सानो भगवती अन्नपूर्णा के साक्षात् विद्यमान होने को प्रमाणित कर रहा है। आहा धन्य यह काशी है कि जहाँ कुवेर के समान कितने ही धनवान और शेष के सदृश कितने ही विद्वान्, असंख्य भक महात्मा और तपस्वी अब भी निवास करते हैं। धन्य