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प्रेमघन सर्वस्व

वाहन के समान इस अनुमान के यथार्थ होने का प्रमाण सी दे रही है। इस वर्ष सूर्य ग्रहण के समीप होने से प्रयाग के कुम्भ से लौटे साधु सन्ती का उस पार भी अधिकता से आ बसने से एक नवीन जनस्थान सा बस गया है, जो मानो बुढ़वा बाबा की बारात का जनवास है, कि जिसमें भिन्न भिन्न प्रकार के साधुओं की मंडलियाँ मानो भिन्न भिन्न बाराती देवताओं की बराती सेना है,—यदि दण्डी लोग काषाय वस्त्रधारी चोबदार कञ्चुक वा द्वारपाल हैं; तो परमहंस लोग पार्षद, और प्रधान; तथा नंगे भुजंगे बिभूतिधारी नागे उस दिगम्बर के खास हुजूरी पलटन के सैनिक समूह के समान अनुमान होते। अयोध्या के वैष्णव लोगों के अखाड़े मानों विष्णु की सेना है, और कमण्डलु धारी अनेक ब्रह्मचारी और ब्राह्मण ब्रह्मा की, उनके दर्शकधनी गृहस्थ कुबेर और उनकी रक्षा के अर्थ युलोस के कान्सटेविल और चौकीदार यम की और अनेक अन्य अन्य की। श्रीगंगाजी में भी नौकाएँ आज अधिक है; क्योंकि बहुतेरा नावे आज ही पटी हैं; क्यों नहीं; आज तो दङ्गल (किश्तियों की कुश्ती का मेला)न है, वाह! यह महाराज काशिराज का कच्छा है कि जिससे सात कच्छे एकही में मिलाकर पटे हैं, और बड़ा भारी देश और शाहमियाना खड़ा है, और भी सब उचित राजसी ठाट ठटा है, सुन्ड की झुन्ड रण्डियाँ बैठी हैं, यह यहीं की बनी केले के खम्भे के समान मोटी मोमबत्तियाँ हैं, जो बैठकियों पर लगी है; पर नृत्य गान कुछ भी नहीं होता है, क्यों कि महाराज तो धुड़दौड़ (एक उत्तम नौका जिसके अग्रभाग पर दो कृत्रिम घोड़े लगे हैं) पर सवार हो आज मेला देख रहे हैं, और उसी पर गान हो रहा है। इधर उधर के कई सुसज्जित बजड़े और मोरपडियों पर महाराज के अन्य प्रधान पुरुष लोग भी साथ साथ मेला देख रहे हैं। वाह! क्या विचित्र शोभा है; सुने पार्षदवर्ग और परिकरयुक्त श्रार्य राज वेषधारी नवीन महाराज अाज कैसे शोभायमान हो रहे हैं, मानो बुढ़वा मंगल अपना बुढ़वा स्वामी छोड़, नवीन को पाकर नवीन मंगल हो गया है। यह जिस मोर पडी पर नाच हो रहा है, उस पर महाराज के ठाकुरजी विराजमान मेला देख रहे हैं। धन्य! क्या हिन्दू राजा की पवित्र श्रद्धा का प्रमाण है। धन्य काशिराज धन्य! वृद्ध महाराज की इन परिपाटियों को अद्यापि यथावत् प्रचरित रखना आपके महानुभावता का प्रबल प्रमाण है। इसमें संदेह नहीं कि इस मेले में स्वयम् सुशाभित हो, न केवल श्राप इसे शोभा और भान सम्प्रदान करें