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बनारस का बुढ़वा मंगल


जिसकी तीव्र ज्योति झांड और फानूसों में लगी शीशों की हाल और कलमों पर पड कर सतरङ्गे असख्य इन्द्र धनुष बनाती और दर्पणों में अपना प्रतिविम्ब ला वर्षा ऋतु की चंचलता की चकाचौध लाती है किन्तु नीचे दृष्टि दीजिये मानो बसन्त का अखाड़ा वहीं उतरा अनुमान होता। न केवल कच्चे की सजावट ही मे गुलाबी रंग की दिखलावट, और अनेक सोने चाँदी के फूल चमेरों में गुलाब के फूल अधिकता से भरे है, वरञ्च उस पर बैठे सभासद स्वामी, सभ्य, और सेवक सब लोग गुलाबी ही रंग की सब पोशाके पहने हैं, जिससे यही अनुमान होता है कि मानों इस चैत मास में प्रातःकाल ही गाजीपूर के उन गुलाब के खेतों में जा पहुँचे हैं, कि जहाँ कोसों तक केवल गलाब के फूलों के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखलाई पड़ता, भाई, इस भाँति गुलाबी रङ्ग से रङ्गी महासभा किसी ने काहे को कभी देखी होगी। सच है, यह यही का प्रसाद है जो कि अब के अन्य नौकाओं पर भी अधिकांश लोग गुलाबी ही रङ्ग के कपड़े पहिने देख पड़ रहे है, कदाचित इस वर्ष हजारों थान गुलाबी रङ्ग के रेशमी कपड़े केवल इसी मेले के कारण बिक गये होंगे, तथा सहस्त्रों दर्जी और रङ्ग रेजों का भी भला हो गया होगा। इन चाँदी की चोबों पर तने सुनहरे कामदार नमगिरे के नीचे गुलाबी कमखाब ही का बिछौना बिछ रहा है, जिसके आगे सुन्दर सोने के अनेक मजलिसी साज, पानदान, इत्रदान नादि सुसञ्जित है, और उसके नीचे हौज में नृत्य होता है।

क्या नगर का कोई ऐसा प्रतिष्ठित और मान्य पुरुष होगा कि जो इस समय यहाँ उपस्थित न हो? नहीं, कदापि नहीं, हाँ जब अनेक दूर के नगर निवासी आज आकर बनारसी हो रहे हैं तो भला बनारसी क्यों न आ उपस्थित हो। वास्तव में कैसे-कैसे धनी और मानी लोगों की इस समय यहाँ भीड भरी, है बड़े-बड़े बहुमूल्य वस्त्राभूषण धारी पुरुष इधर से उधर ठोकर खा रहे है और अनेक लक्षपतियों को तो कहीं बैठने का भी ठिकाना नहीं लगता है। सचमुच ऐसे समारोह की सभा तो कदाचित बड़े-बड़े महाराजाओं के यहाँ भी न देखने में आती होगी। हाँ फिर बड़े-बड़े महाराजाधिराज लोग जिनसे दास्यभाव का ब्यौहार रखते उनकी बात ही क्या कहनी है। देखो न हमारे महाराज काशीराज ही समस्वराज चिन्हों का परित्याग कर सन्मुख कैसे विनीत भाव से बैठे हैं।