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प्रेमघन सर्वस्व

कुछ ऐसे कि दिल्ली के यात्रियों की यात्रा की दुर्दशा देख अपने जाने पर अनुमान से दुख सुख का पड़ता फैला कर इस दुर्दशा के जाने से सुखपूर्वक घर बैठे रहने ही में आनन्द है। कह मूछों पर ताव देने घाले लोग डट रहे है!

मुझे देख अनेक उनमें से दौड़ पड़े और लगे भाँति-भाँति की बोलियाँ बोलने। कोई अगर एक प्रश्न करता तो दूसरा चार उत्तर दे देत। यदि एक 'पूछता, कि "आज पञ्जाबमेल पर आपके और साथी तो आपका बहुत इन्तजार कर लाचार हो चले गये, आप अब तशरीफ ले चले हैं!" तो सदा। कहता कि, "आपका जाना ही आश्चर्य है, हमें क्या किसी को भी आप के टसकने का पूर्ण विश्वास न था, इर्ष का विषय है, जो आप प्रधारते हैं" तीसरा बोलता "सच पूछिये तो जाना आपही से लोगों का जरूरी है, आप जायँगे तो वहाँ से बहुत से खयालात, साथ लाएँगे। और फिर वहाँ की ऐसी ऐसी दिलचस्प, कैफियत का ब्यान और इकमि फर्मायेंगे, कि बहुतेरों को घर बैठे ही दिल्ली दिखलायेंगे "चौथा कहता, कि—धन्य महाशय! धन्य! अबतक आप यही कहते आये, कि मैं कदापि न जाऊँगा। हम कई लोगों का संकल्प भी आपही के संग चलने का या। सो आप ने कइला भेजा कि कल-जाँयगे, हम लोग कल से बेकल हैं, क्यों कि बिना गये कल नहीं, इतनी जल्दी में ऐसे भारी सफर की तैयारी क्योंकर कर सकते थे। खैर, आपतो चलिये, कल मैं भी चल पड़गा।" में सबकी सुनता पर किससे किससे क्या कहता! मानो मेरे उत्तर के स्थानापन्न टन् टन् घण्टा बजा और घमघमाती हुई गाड़ी आ अड़ो

देखा कि ट्रेन में हद से ज्यादा गाड़ियाँ जुड़ रही हैं और हर खानों में मुशाफिर अलमारियों में किताबों के समान कसे पड़े हैं! किसी श्रेणी वा दर्जे का विवेक नहीं है। इतने हीं में हमारे पूर्व कथित कारिन्दे साहिब पाकर एक सेकेण्ड क्लास और कई यर्ड क्लास के रिटर्न टिकद मुझे दे कर कहने लगे कि "असबाव तो साथही ले जाइये; पार्मल बाबू ने कहा कि "आप मेरी तरफ से कह दीजिये कि ऐसे मम्मड़ और मेले के समय कई कारण से लगेज बेक में देना ठीक न होगा, साथही लेते जाय" मैं नाराज हो कहने लगा कि क्यों तुमने मालक में नहीं भेज दिया और क्यों रिटर्न ट्रिकट-ले लिया! फल यही होगा कि हम लोग. चले भी गये तो.असबाब यहीं पड़ा रह जायगा। उसने कहा कि "आप सवार इजिमें, मैं अभी सबै आदमियों को चढ़ा दूंगा और कुल असबाब उन्हों के साथ लादे देता हूँ। यह कह