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प्रेमघन सर्वस्व

"साहिब आप लोग भी तो सब के सब निकल भागे, कहीं ऐसा भी करना होता है। हम तो देखते थे पर यह क्या जानते थे कि आप के नवाबब जी चोरी करते हैं।" बग़ल के दूसरे बाबू बोले, कि "हम तो उसका शूरत देखते ही सामजा, जे ये आवश्शा कोई खोटा मनुष्य होय, किन्तु, क्या दोरकार! ओहो! की शाश्चज्जों! देखो ना, इस माफिक लोक केशा धोखा देता है फिर सबसे अधिक पूर्वोक्त एगाना चेला उठा और कमर कसता चलता कहने लगा, कि "देखो अभी साले को तमाचों मारता पकड़े लाता हूँ!" मैंने उसे वारण किया। मुझको उस मनी बेग का नहीं जिसमें कदाचित् रूपये दस से अधिक न थे, परन्तु सब के सब रिटर्ने टिकट मैंने उसी में रख दिये थे अतः उसके खो जाने का बड़ा रंज हुआ और उसी के लिये कोई उचित कर्तव्य का निश्रय नहीं होता था, और किसी की कोई सलाह मुझे नहीं भाती। हरचन्द उस गाड़ी में बड़े बड़े चतुर और चैतन्य लोग थे और एक दर्जन से कम सलाह भी लोगों ने न बतलाई, परन्तु मुझे उनमें से कोई न भाई।

मैंने इतना ही सारांश समझा कि—यह भी अंग्रेजी नकल का दण्ड है नहीं तो मनी का स्थान कमर, कि बेग और जेब? और फिर ओवरकोट का। हमारे यहाँ "रुपया टेंट का" की कहावत चिर प्रसिद्ध है। अस्तु, "गतन्नशोचामि कह कर चप हमा। इसी झंझट में समय बीत गया और रेलगाड़ी चल निकली, तो भी रेलगाड़ी की चाल के साथ ही साथ चर्चा इसी की चलती रही। लोग अपनी अपनी कोठरियों में बैठे अति आश्चर्य और परिताप से इसी की कथा कहते, भाँति-भाँति के सोच विचार कर कई उपाय, अनुष्ठान और कर्तव्य स्थिर करते रहे।

कोई अगर एक युक्ति बतलाता, तो दूसरा भी उसे उचित ठहराता। तीसरा उसमें दोष दिखलाता, तो चौथा पाँचवे के कान में लग कर मुस्कुराता और कुछ कहता जिसे सुन वह अपनी गर्दन हिलाता और मुझे सूचित करने की सम्मति देता विशेषतः बंगाली लोग जिनकी संख्या भी उस गाड़ी में विशेष थी, इस विषय पर विशेष अान्दोलन कर रहे थे। किसी स्टेशन पर गाड़ी खड़ी होते देर न होती और मेरे लिये नये दो चार अनुष्ठान बतलाये जाते, जिन्हें सुनते सुनते मैं इतना अग्रान हो गया कि वहाँ बैठना कटिन प्रतीत होने लगा। यद्यपि मैं उनसे यह भी बारम्बार कहता कि मैं अब एतद्दविषयक कोई कार्यवाही नहीं किया चाहता, तथापि दो चार बङ्गाली महाशय इतने उत्तेजित थे कि वह किसी प्रकार नहीं मानते, कई बार जा जा कर