पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५६
प्रेमघन सर्वस्व

बजने झरमन, छयो राग छत्तीस रागनी विस बाजे पर हुई मगन। और थिरक थिरक गत नाचे फिरङ"।

खैर, ग़दर के बाद मैंने कई दरबार अंगरेज़ी भी देखे, इन नये शहनशाह सलामत इडवरडशाह बहादुर की अम्माजान साहिया मलिका मुअज्जमा विक्टोरिया में जब कि शहनशाही का खिताब लिया था, तो उसे भी जिसको 'दरबारी-कैसरी के नाम से लोग पुकारते थे, देखा, मगर कुछ समझ ही में नहीं पाता कि आखिर इन फ़िजल बातों का नतीजा क्या होता है? सिवा इसके कि बिचारे राजे और नव्बाब घुला बुला कर बे फायदा तंग और तबाह किये जाते हैं। क्योंकि ये सब मय अपने लश्कर और कुल लशज़माति जुलूस वगैरह के साथ पाते, और नाश्ते के लिये एक फूटा दाना तक नहीं पाते; अपने पास से खाते खर्चते आते, और फिर उसी तरह फिट्ट चले भी जाते। यों फ़िज़ल अपनी शान वो शौकत दिखलाने को बेचारे कर्ज़ ले लेकर सामाननुमाइशी के सरंजाम करने में ज़ेरवार होते हैं, और मज़ा यह कि बिलकल बे फायदा। इन सबको तो चाहिये था, कि-एक एक काली कोट और पतलून पहने हुये, नंगे सर दो चार आदमियों के साथ रेल पर चढ़े चले आते, सरा या होटल में ठहर जाते, सुबह उठकर एक दुपहिया गाड़ी पर चढ़ बैठते, और दर्बार में जा पाँचते आदाब बजा लाते, और लाट साहब जो कुछ फर्माते सुनाते, बस "अल्ला अल्ला खोर सल्ला"

जो आज जमाने की रफ़तार और चलन है, उसीपर कमाहकहू अमल करते। मगर हमारे मुल्क वाले तो हमेशा से ऐसे ही ढंग पर चलवे श्राते हैं कि जिसमें सिर्फ विनका नुकसान ही नुकसान हो और वह ज़रबार हो। नहीं तो सरीहिन देखते हैं कि बादशाह बल्कि शहनशाह तो अपने तख्तनशीनी में भी एक ख़र-मुहरा खर्च करना नहीं चाहता,और लाचारी दर्जे पर जो खर्च भी करना पड़ता है उसे टिकस दिकम लगा कर वसूल कर लेता, और ये लोग मुक्त में अपने दिवाले निकाले देते हैं। वुह तो देरे, खीमें, मेज, कुसी, घोड़े, गाड़ी और बुल जुमला सामाने अराइश दरबार होते ही नीलाम कर देता, और ये उसे खरीद करने को दस रोज़ और भी ठहर कर इन्तजार करते है। और इस तरह न सिर्फ अपना अपना-खजाना ही खाली कर डालते, बल्कि मनरूज्ञ होकर बदनाम और नाकाबिल इन्तज़ामे रियासत मृतसव्विर होकर तन जुल किये जाते हैं।