पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/१९

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लीन साहित्य निर्माताओं के काव्य में कम दिखाई पड़ता है। प्रेमघनजी की बहुमुखी प्रतिभा वहाँ भी थी और उसी के कारण हमें उनके काव्य में भी तत्कालीन प्रत्येक विषयों पर उनका प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है।

सामाजिक भावनाओं के साथ साथ उन शाश्वत भावनात्रों का आपने अपने काव्य में समावेश किया है, जो चिरंतन काल से मनुष्य के अन्तर्गत होती हुई काव्य में आई है। यदि लोक गीतों द्वारा कवि ने जनता के हृदय को पहचाना तो जन साधारण की भाषा में कजली की मधुर तानों द्वारा जागरण के गान मुखरित किये।

प्रेमघनजी गान-विद्या के आचार्य थे, उन्हें साहित्य और संगीत दोनों का पूर्ण शान था। वे जानते थे कि साहित्य और संगीत दोनों का चिर साहचर्य तभी सम्भव है जब कवि साहित्य को संगीत के आवरण से मुक्त कर मानव। जीवन के उत्थान, पतन, उत्कर्ष,अपकर्ष नाना लीलाओं के गान में देश-व्यापी भावनाओं को मुखरित करें। समाज का परिज्ञान प्रेमघनजी को इतना अधिक था कि उन्होंने अपने समय में एक चतुर चितेरे की भाँति देशकाल की समसामयिक परिस्थितियों का पूर्ण चित्रण तो किया ही, वरच उन्होंने एक उपदेशक की भाँति समय समयपर अपने पा तथा पत्रिकाओं द्वारा जनता को सदैव सद्मार्ग निर्दिष्ट करके उनके हृदय में समय का वास्तविक तथा सञ्चा परिज्ञान करा दिया।

लोक हित की भावना उनके काव्य में जितनी प्रचुरता से प्रस्फुटित हुई है उतनी हमें तत्कालीन लेखकों में कम मिलती है। इस भावना के अन्तर्गत उनके पद्य, गद्य, नाटक, सभी हैं वह यह मानते थे "विगरो जन समुदाय बिना पथ-दर्शक पंडित" और साथ ही साथ उन्हें बुटिश शासन का भी बड़ा कटु अनुभव हुआ, कवि हृदय बॉल उठा "ब्रिटिश राज्य स्वातंत्रमय समय व्यर्थ न बैठ बितायो

भारतेन्दु काल हिन्दी के गद्य के विकास का प्रथम प्रभात सिद्ध हुश्रा है। भारतेन्दु के पहले गद्य का ब्रजभाषा रूप भले ही था पर गद्य को चिरंतनता उस समय तक न मिली। भारतेन्दु काल में खड़ी चोली की कविता का जो उदय हुआ, और प्रेमधनजी ने जिस प्रकार खड़ी बोली का परिमार्जन किया वह उनके काव्य से स्पष्ट है और उसके लिए उनका भगीरथ प्रयत्न श्लाध्य है। पर खड़ी बोली पद्य के साथ साथ खड़ी बोली गद्य का भी प्रेमघनजीने