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दिल्ली दरबार में मित्र मण्डली के यार

गई। गाड़ीवान था नादान और देहात का रहने वाला उसे दिल्ली की गली कचों से कभी काम ही नहीं पड़ा था, वह हमारे ही आदमियों से पूछता कि पत्तायों "किधर चले" क्योंकि गाड़ी चौराहों पर कदाचित पाँव मिनट भी कदापि खड़ी न होने पाती इसी लिए दो यादमी तो मेरे केवल दौड़ दौड़ कर लोगों से यही पूछते घूमते कि भाई चितली कब किधर है' भोजला पहाड़ी कहाँ है? दस से पूछते तो एक से जवाब पाते, उनमें भी अनेक अपनी अनभिज्ञता प्रकाशित करते फिर विराने देश में किससे पूछे यह भी ठीक करने में असमंजस होता। निदान बिना किसी ठौर टिक'ने उटक्कर लैस इधर से उधर और उधर से इधर घूसते घूमते नाकों दम आ गई, पैरों में अब इतनी भी शक्ति नही कि दस कदम चलने की हिम्मत रखें। निदान किसी प्रकार हम लोग ढुँढते ढाँढ़ते भोजला पहाड़ी पहुँचे। साले साहिब मिले, दिल्ली की लल्लो चप्पो होते हवाते उन्होंने ठहरने की जगह दिखलाई कि जो मुझे बहुत ही भाई। क्योंकि एकांत सुरक्षित, और एकमेव मेरे ही अधिकार में हो सकती थी, न उनके और मिहमान और न कोई दूसरा भी वहाँ था। मनमानी जगह मिलने से तसल्ली से असबाब वगैरह रक्खा गया और डेराडण्डा ठीक हुआ, खाने पीने के बाद जो खाना तहलील करने और हरारत मिटाने को लेटे, तो दिन गायब हो गया। सायम् कृत्य से निवृत्त होते होते रात हो गई और फिर उठने का उत्साह २६ दिसम्बर के प्रभात को जैसे ही रजाई से मुँह निकाला तो गृही महाशय का मङ्गलमय मनोहर मुख लख कर चित्त अति श्राहादित हुआ, क्योंकि ब्राह्मण वर्ण के साथ आपका गौर वर्ण, सुन्दर मुस्कुराता हु्आ मुखड़ा सरस और सुहावना था अवस्था आपकी कुछ न्यूनाधिक २२ वर्ष की, स्वभाव अति कोमल, उदार और नम्र। सौजन्य के तो मानों मूर्ति, विद्या आपने अंगरेजी और फारसी पढ़ी है, संस्कृत हिंदी भी अच्छी जानते, फिर उर्दू की जन्मभूमि दिल्ली के रमने वाले अतः बोलचाल बड़ी ही प्यारी और सरस थी। उनकी योग्यता का प्रमाण तो यही है कि पिता के लोकांतरित होने और घरमें कोई बड़ा न रहने पर भी आपने अति शीघ्र विद्योपार्जन किया और सदैव कालेज में अति योग्य माने गये। निदान वह मुस्करा मुस्करा कर कहने लगे कि वाह! आप अबतक उठे ही नहीं? आज वाइसराय की सवारी निकलेगी जिसकी बड़ी धूम है। बस जल्दी कीजिये नहीं तो नौ बजे के बाद तो रास्ता ही बन्द हो जायगा और फिर बैठने की जगह भी दुश्वार हो जायगी। बड़ी