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प्रेमघन सर्वस्व

मुशकिल में पड़ जाना होगा।" अस्तु मैं चटपट आवश्यक कृत्यों से निवृत्त हो कपड़े पहन रहा था कि गृही महाशय भी तैयार था पहुँचे और कहने लगे, कि "चलिये देर होती है, सवारी को तो जरूरत नहीं है क्यों कि जहाँ से बैठ कर सवारी देखनी है, बहुत पास है और हुजूम बेइन्तिहा है।" निदान हम सब उनके साथ चल निकले। हमतो मुसाफ़िर थेई, वह गोया, गाइड बने स्थानों का बिबरण बतला चले। कुछ ही दूर चलने पर नानवाइयों की दकानों से लहसन प्याज मिश्रित निषिद्ध मांस की दुर्गन्ध से भेजा मिन्नाने लगा, जिधर देखिये महा मांस से भरे टोकरे अधिकता से आ जा रहे हैं। घबरा कर मैं कहने लगा कि यह कहाँ लाये? म्लेन नगरी की यह असह्य यातना मैं अब अधिक नहीं सह सकता। इसी से "आहिस्ता के चलने में जान निकलती है। पर जल्दी चलो, याँ जान निकलती है" वह सुन कर हँसते हुये यह कहते आगे बढ़े कि "यह हिस्सा महज़ मुसलमानी बस्ता का है, इसा से यह खराबी नज़राई देती है अब आगे फिर नहीं है। मैं उनके पीछे लगा हुया चला, देखा कि आग वेग से मित्रवर श्रीमान् भयङ्कर भट्टाचार्य जी महाराज लपके चले आते हैं। मैं बहुत प्रसन्न हुआ, प्रणामानन्तर चलते चलते वातालाप हो चली, उन्होंने पूछा कि आप लोग कहाँ से लाट यात्रा देखेंगे" गृही ने बतलाया कि "अमुक स्थान से" उन्हों ने मुझसे कहा कि "मैं तो ऐसे अलभ्य अवसर पर एक स्थान पर बंदी सा बैठा व्यर्थ अपना समय नष्ट नहीं कर सकता, वरञ्च अभी नवाब साहिब की गाड़ी पर से कूदा चला आता हूँ। जहाँ जहाँ तक गाड़ी जा सको तहाँ तक का मेला तो में देख चुका शेष के अर्थ उत्कण्ठित हूँ। समझा कि तुम मिल जाओगे तो और भी विधि मिल जायगी। इसी से इधर मुड़ा। सो यदि आनन्द चाहते हो, यदि दिल्ली देखा चाहते हो, इस विराटागत जन समूह के संगम का मुख लूटा चाहते हो तो मेरे साथ आओ और मेरे कहने पर चलो" गृही ने कहा कि—"फिर टिकट खराब हो जायगे और शायद बैठने की जगह भी न मिले श!" उन्होंने कहा कि "वाह श! जगह की कमती है! अस्तु, आप लोगों में से जिन्हें जहाँ इष्ट हो जाँय, परंतु मतो जाते नहीं। सारांश साथ के और लोग तो टिकट ले बैठने के अड्डे पर पहुँचे और हम गृही और एक सेवक अपने मित्र के साथ हुये। उक्त महाशय ने इञ्जिन के समान हम लोगों को लिये अपनी परिक्रमा श्रारम्भ कर दी और घूम घूम कर एक एक स्थान पर विराजमान जनसमूह का निरीक्षण कर चले। यदि गृही महाशय दिल्ली का उसके निवासियों