पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२०

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पूर्ण परिष्कार किया और जिसके फल स्वरूप गद्य-काव्य में उन्होंने सामाजिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक लेख ही न लिखे बरञ्च उन्होंने गद्य के अन्तर्गत सजीवता का भी संनिवेश किया। 'बेसुरी तान' शीर्षक लेख के अन्तर्गत जिसमें उन्होंने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की आलोचना की है सजीवता का सुन्दर उदाहरण मिलता है। "प्रिय पाठकों, हमने जो अपने पत्रिका की प्रथम संख्या में लिख दिया था कि (सच पूछो तो जब से कवि वचन सुधा से सुधा का ख्वाद स्वधा सुरपुर में जा बसा और हरिश्चन्द्र चन्द्रिका के चन्द्रिका में चमकीलापन और मनोहरता का गुन तमाम कर डाला, और उर्दू की जो उने आधार हो रही है होनहार-दुर्दशा सोच, ये मारे सोच के अभी से विह्वल हु गए। क्या करें, क्यों न चिन्ता करें और इस छुपे-मुंदे मरस के खोल देने पर क्यों न कड़बड़ायें। पर अब टुक श्रीमान् महाराज शाहजहाँ के खानदान को वची बचाई सब कुछ मुगलानी उर्दू की दुख्तरे नेक अख्तर बीबी चन्द्रिका का जौहर जिसका इस वृद्धावस्था में विद्यार्थी शौहर हुआ है। देखिये बाह बहा क्या कहना है यह चटक मटकये सुभान अल्लाह मैं सदके। मैं कुर्वान। माशा अल्लाह! चश्में बद्दूर। बीबी तुम्हारे इस सिन व साल पर इन नये नखरों ने तो वल्लाह इस बेतरह आफ़त मचा दिया, वाह क्या बोली है कि रोने में भी जो टटोली है पर तिस पर भी आपके बड़े भाई हज़रत मौलाना कवि वचन सुधा साहब को जिनका दिमाग़ उर्दू की बू से फटा चाहता है बों फरमाते हैं कि "अगर कादम्बिनी हट जाय तो चन्द्रिका दिखाई पड़े, सच है कादम्बिनी, से चन्द्रिका सदा दबी रहती है" गद्य के इस आविर्भाव काल में प्रेमघनजी ने प्राचीन प्रणाली का अनुसरण नहीं किया। उन्होंने न तो लल्लू लाल के ब्रजभाषायन को अपनाया न सदल मिश्र के पूर्वी पन को राजा शिवप्रसाद का उपन तो उन्हें असह्य ही था, आपने अपना नवीन मार्ग ही प्रतिष्ठित किया।

आपकी विशेषता जिस प्रकार पद्य के अन्तर्गत खड़ी बोली की प्रतिष्ठा से है उसी प्रकार गद्य के अन्तर्गत भी। आपने अपने गद्य-काव्य में अलंकारिकता को प्रधानता दी है क्योंकि उनका ध्यान 'रसात्मकं वाक्यं काव्यं' पर सदैव रहता था अनुप्रास उन्हें गद्य के अन्तर्गत भी उतना ही आवश्यक समझ पड़ता था जितना कि श, पद्य में श। भाषा में श्लेषात्मकता लाकर प्रभावात्मकता उत्पन्न करना, हास्य और परिहास, व्यंग और विनोद, उनकी शैली के प्रमुख अंग थे श। आपने सदा अपने काव्य में चमत्कार और अनूठेपन की विशेषता रक्खी