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प्रेमघन सर्वस्व

दस बजे तक रात को पलटना। इसी से नित्य का वृतान्त हन यथाक्रम से न लिखकर केवल मुख्य-मुख्य विषयों पर कुछ लेखनी सञ्चालन करना चाहते हैं; क्योंकि हमारा वर्णनीय विषय तो केवल इस अवसर पर एकत्रित अपनी मित्र मण्डली से सम्बन्ध रखने वाली अनेक वार्तायें और सिद्धान्त है। हाँ, उसके प्रसंग में कुछ-कुछ सामयिक उत्सव और स्थानादि का आख्यान और उनपर हम लोगों की सम्मति और समालोचनादि भी कुछ आ ही जायेगी। क्योंकि उस उत्सव और दार आदि का सामान्य वृतान्त तो प्रायः सब समाचार पत्रों में प्रकाशित होई चुका है। हम भी अपनी "भारत बधाई बा भारत सगाई।" नामक कविता में सब कुछ कह चुके हैं। यहाँ उससे अधिक और क्या कहा जा सकता है।

आज ३० दिसम्बर है। आज ही प्रदर्शनी जिसकी बहुत दिनों से धूम धाम सुनाई पड़ रही है, लार्ड कर्जन के हाथों खोली जायगी इसी से सब का लक्ष्य उधर ही है। कल के निर्णीत क्रमानुसार ठीक दस बजे हमारे नवाब साहेब अपने समस्त परिवार और कई मित्रों के सहित मेरे डेरे के द्वार पर आ धमके। गाड़ी की आहट पाते हो हम भी उनसे जा मिले। और सब लोग इधर उधर नगर को देखते संभालते प्रदर्शिनी के निकट आ पहुँचे। क्या कहना है। बड़ी धूमधाम है। इस प्रदर्शिनी के खोलने का समारम्भ क्या है, मानो होनहार दरबार का पूर्व रूप है। ब्याह के तिलक की मुहफ़िल या बारात की सोहगी, अथवा दार दुलहिन की मुँह देखावनी व होली तिवहार की बसन्त पञ्चमी है। जिधर से देखिये गाड़ियों की कतार और मनुष्यों की भरमार, टिकट की लूट और साथियों की छूट। प्रदर्शनी भवन का वाह्य प्रान्त ऐसा मनोहर दिखलाई देता था, मानों यदि आगरे का ताजमहल मुस़लमानी बादशाहत की एक अनोखी यादगार है, तो कदाचित यह भवन अंगरेज़ी राज्य का अपूर्व स्मारक बनाया गया है। दूर से इस पर भी संगमरमर की भ्रान्ति होती। किन्तु यहाँ तो चार दिन की चाँदनी की चमक दमक रहती। यह। झूठी कलई की हुई मनोहर इमारत चन्दरोज़ा नुमाइस के लिये सचमुच केवल चन्दरोज़ा नुमाइशी है। अस्तु, सब राजे महाराजे राजकर्मचारियों से भरे जन समुदाय में लाट कर्जन आये, स्वागत हुआ और श्रीमान् ने एक वक्तता देकर प्रदर्शिनी खोली। लोग भीतर घुसे और प्रदर्शनी भवन में सहीत पदार्थों को देख दिखा प्रसन्न मन अपनी-अपनी राह ली।