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शोकोछ्वास

उनकी चमत्कृत चातुरी और सर्वसद्गुण सारग्राही होने में कौन सन्देह कर सकता है।

लक्ष्मी द्वार कि जिसका सा सुन्दर फाटक भारत में कदाचितही कही हो क्योंकि उससे अधिक द्रव्य लगे फाटक चाहे कई क्यों न हों, पर उसकी सा नास बनावट और सजावट तो कदाचित दुर्लभ है। जिसपर सदैव नौबत झडती और जिसके ऊपर 'मेकडोनल क्लाक टावर'-जिसके ऊपर राज पताका उडती थी, जिसके भीतर जाते ही विलास रंग भूमि जिसमे सैनिक समूह का आवासस्थल, सामने जिनके पुरन्दर द्वार जिसके भीतर राज कोष, जिसके ऊपर राज कार्यालय कि जिसमे जाने से प्रयाग, के हाईकोर्ट का भ्रम होता था, उसके एक पार्श्व मे चिडिया खाना, दूसरे पार्श्व मे नृसिह द्वार, दूर्वादल सुसज्जित प्राङ्गण के मध्य विद्युत प्रभास्तम्भ के चतुर्दिक गोलाकार मार्ग जिस पर सदैव भारवि के कथनानुसार "अनेक राजन्यरथाश्चसकुला, तदी प्रभास्थाननिकेतनाजिरम्" दृष्टान्त दृष्टिगोचर होता था।

[१]लक्ष्मी द्वार लक्ष्मी के अनेक अङ्गों से सोभायमान, तो पुरन्दर द्वार अपने पूर्ण पालड्वाल से पूर्णत चरितार्थ होता और नृसिंहद्वार वास्तव मे नृसिह के श्रावास होने से सबसे अधिक सार्थक होता था न कि केवल महाराज के पिता के नाम होने के कारण से जिसके आगे से राजसदन प्रारम्भ होता, जिसमे कही शृङ्गार का, तो कही राधा मावव का मन्दिर, कही राजराजेश्वर नामक भगवान् भूतभावन का दिव्य देवायतन, तो कही पञ्चदेव के भिन्न-भिन्न स्थान, कही प्रास्त्रागार तो कहा औपधालय, कहीं रत्नागार तो कही पुस्तकालय, साराश सभी राजोचिन सामग्री में अर्थ भिन्नभिन्न प्रशस्त और उचित स्थान वर्तमान, जो अपनी-अपनी बनावट और सजावट से सुसम्पन्न शोभा की वृद्धि कर तो भिन्न भिन्न ऋतु और अवसरों के अनुकूल बिहार-भवन, स्नानालय और चनालय,ने पथ्य और शयनागार, क्रीड़ा और कुतूहल के मनोरञ्जन और सुख सामग्री सम्पन्न आवास निर्मित हैं। बीच मे रनिवास का प्रधान द्वार जिसपर अब समस्त स्थलो से सिमिट कर श्री विराजमान हो रही है, वर्तमान हैं। उसके आगे बढकर जिसने सुक्ताभास महल देखा है, महाराज की शिल्प चातुरी, उनकी अति प्रशस्त और उच्च रुचि का परिचय पाआश्चर्यित हुआ है। उसकी न केवल बनावट वरञ्च


  1. महाराज अयोध्या का सदर फाटक