पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७७
शोकोछ्वास

छटाओं की झाँकियाँ की हैं, वह उनकी भक्ति, शऊरदारी, 'टेस्ट' और 'सेटीमेंट' को समझ सका होगा।

आप अवध के तीसरे नम्बर के तअल्लुकदार थे, किन्तु न केवल सर्व प्रकार सर्व श्रेष्ठ थे, परञ्च अवध प्रदेश के तो साक्षात् सूर्य थे। वास्तव में वह एक अनुपम पुरुष रत्न थे। वह ब्राह्मण होकर भी क्षात्र गुण संयुक्त थे। वीरता का अलौकिक साहस आज भी उनमें देखा जाता था। उदारता कैसी कुछ कि जिसे जो जानते हैं, मुक्त कण्ठ से मानते हैं। असंख्य सद्गुण सम्पन्न होने पर भी वह एक ही गुणग्राहक थे। उनके विषय में एक सुकवि का यह कथन बहुत ही सत्यं था:—

"चिन्तामनि सुजनन कहँ, वैरिन काल। युवतिन मदन मुरतिया, अवध भुलाला"॥

बह असाधारण श्रीमान होकर भी एक अनोखे प्राचारवान ब्राह्मण थे, सांसारिक विषय-सुखों से सर्वथा सुखी, उसके उपभोग में मस्त होकर भी धर्म परायण थे, कर्मवीर होकर भी प्रबल ईश्वर-परायण प्रारब्धवादी थे। सनातन धर्म के परम अाग्रही होकर भी उचित संशोधन के पक्षपाती थे। उत्कट शैन होकर भी परम वैष्णव थे, रामोपासक होकर भी श्री कृष्ण के चरणनख चन्द्र के चकोर थे, अयोध्याधिप होकर भी वृन्दावन के किङ्कर थे, वह बड़े शान व शौकत के बेनज़ीर अमीर वरञ्च महाराज होकर भी सामान्य जनों के समान सरल स्वभाव और निरभिमानी थे। मिलने जुलने की रीति नीति, शिष्टाचार और वार्तालाप की चतुराई में मनुष्य के मन को मोह लेना वा नागत स्वागत और सत्कार-व्यवहार में किसी को आजन्म के लिये मोल ले लेना—यह तो उन्हीं के बाँटे पड़ा था।

वह रसिक होकर भी धर्म-परायण थे, वह उग्र स्वभाव होकर भी न्यायवान् थे, वह उचित दण्ड देने में समर्थ होकर भी क्षमाशीलता का परिचय देते थे। हितैषी और उपकारियों का प्रत्युपकार करना तो वह जानते ही थे, अपकारियों के अपकार के पलटे वह उपकार करके उन्हें लज्जित करना भी भली भाँति जानते थे। वह इस समय के मनुष्य होकर भी अत्यन्त प्राचीन आयों की मर्यादा का निर्वाह करते थे और फिर पुरानी चाल दाल के होकर भी नये लोगों के मन लुभाने में समर्थ थे।

उनकी रहन सहन वज़ः अन्दाज़ और कार्यों में पुरानी और नई, अंग