पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७८
प्रेमघन सर्वस्व

उनकी सभी बातें अलौकिक और सुहावनी होती थीं, "बिगड़ने में भी जुल्फ उसकी बना की" के सदृश उनके किसी भूल के काम में भी एक विचित्र चातुरी और चमत्कारी लखाती थी।

वह थे तो सामान्य महाराज, परन्तु उनका चित्त सम्राटों के समान था। कहने के लिए तो वह तअल्लुकदार थे, परन्तु सच तो यह है कि भूतपूर्व शाह अवध के मिजाज़ की बू-बास आज कुछ उन्हीं के पास पाती थी—रस, उत्सव और आनन्द का समुद्र जिनके सराहनीय समाज में सदैव उमड़ा रहा करता था। यदि उनके वेश और बानक में प्राचीन आर्य्यता का अनुकरण प्रगट होता, तो साथ ही उनकी बातों ओर कार्यों से निखरी निखराई नई सभ्यता और बज़ादारी भी दिखाई पड़ती थी कि जिसे देख लोग चकित और चौकन्ने हो जाते थे। यों ही जो मनुष्य जिस प्रकार प्रसन्न हो सकता था, उनसे मिल कर वह उसी प्रकार पाहादित हो जाता था। यदि सामान्य पथिक उनकी श्री समृद्धि, वैभव और विविध दृश्य निर्माण चातरी अथवा सत्कार से, तो अनेक अर्थप्रार्थी निज निज अर्थ को पाकर निहाल होते और अनेक प्रकार के गुणी जन अपने गुणों को दिखाकर मालामाल होते थे। किन्तु हाय! किसी के कथनानुसार—

"गरिगो गुमान आज गुनी गुनवन्तन को,
हाय गुनगाहक जहान सों निकरि गो!"

यद्यपि हम लोग उनके अन्तरङ्ग भेदों के जानकार थे और सम्बन्ध हमारा अत्यन्त घनिष्ठ था, किशोरावस्था, अर्थात छात्रावस्था ही से हम लोग परस्पर परिचित थे। क्योंकि हम भी उन दिनों फैज़ाबाद के जिला स्कूल में पढ़ते थे उस समय भी हमें उनकी अलौकिकता भस्मयुद्ध में छिपी आग की चिनगारी सी जुगजुगाती लखाती थी; वह क्यों न ऐसे होते, क्योंकि वह अवध के असाधारण वीरवर महाराजा सर मानसिंह बहादुर कायमजङ्ग के॰ सी॰ यस॰ आई॰ द्विजदेव के दौहित्र तथा उन्हीं से लालित पालित और सुशिक्षित किये गये थे। वह एक बहुत बड़े पद-प्राप्ति की आशा से हताश हो सामान्य दशा को प्राप्त होकर भी उस मह्त्व प्राप्ति के उद्योग में व्यस्त रह अनेक वर्ष विविध विधि-विडम्बना-वारिधि को विलोड़ित करते, भारत के समस्त प्रांतों में स्वच्छन्द विचरण करते, अपने असीम साहस का परिचय देते, विपत्ति के दिनों को व्यतीत करते, अलभ्य लाभ से लाभवान् हुए थे। इसी से उनके