पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२१५

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शोकोछ्वास

उन्होंने साहित्य का एक अद्वितीय भाषा काव्य "रसकुसुमाकर" नामक ग्रन्थ लिखा जिसपर कि डाक्टर थीवो और फेडरिक पिंकार अदि ने प्रकर्ष प्रशंसा सूचक सम्मति दी और यही कारण था कि गवर्नमेण्ट ने उन्हें महामहोपाध्याय का पद सम्प्रदान कर उनके विद्या विषयक अनुराग की प्रतिष्ठा की। श्राजकल महाराज ने निज मातामह स्वर्गवासी महाराज मानसिंह जी द्विजदेव के अपूर्व काव्य 'शृंगार लतिका' का एक अद्वितीय भाषा-तिलक लिखकर प्रस्तुत किया था और १२ फार्म तक उसे अपने राजराजेश्वर यन्त्रालय में छपा भी चुके थे, किन्तु कुटिल काल ने उसके प्रकाशित करने का काल न दिया। आशा है कि महाराज की उत्तराधिकारणी श्रीमती छोटी महाराणी महोदया उसे मुद्रित कराके महाराज के इस अन्तिम कृत्य से पूर्ण और प्रस्तुत कर हिन्दी के साहित्य में उनकी अमल कीर्ति को चिरस्थायिनी करेंगी।

महाराज की अन्त्येष्टिक्रिया श्रीमती छोटी महाराणी के द्वारा बड़ी ही धूमधाम से और यथा रीति सम्पादन की गई कि जिसमें लाखों मुद्रा व्यय हुआ महा पात्र की सवारी इस धूम की निकाली कि लोगों को महाराज ही की सवारी का धोखा होता था। इसलिये कि महाराणी जी ने प्रायः महाराज के सब निज के बर्तने की सामग्नियाँ भी उसे दे डाली थीं। वास्तव में उन्होंने जिस उदारता, शान व शौकत से अंतिम कृत्य समाप्त किया, वह न केवल उनके अकृत्रिम पतिप्रेम और उनमें अटल भकि का साक्षी है, वरञ्च उससे यह भी प्रमाणित हो गया कि श्रीमती में प्रशंसित उदार महाराज की अद्धाङ्गिनी होने की पूर्ण योग्यता प्रस्तुत है। एवम् न सामान्य वरच विशेष प्रबन्ध का भी भाव उनमें वर्तमान है। क्योंकि इस अवसर पर आये न केवल अवध के असंख्यतअल्लुकदार और प्रान्त सज्जन, घरञ्च भारत के अनेक प्रान्तों से पधारे बहुसंख्यक अतिथियों का जिस प्रकार प्रातिथ्य और सत्कार उनके द्वारा हृया, वह किसी ऐसी भोली भाली भामिनी का जिस पर अचानक आकाश फट पड़ा हो, जिसने कभी कोई भी प्रबन्ध का काय्यन किया हो, असहा शाक मूर्च्छित अवस्था में उचित रीति से निर्वाह करना परम असाध्य है। इसी से श्राशा होती है कि प्रशंसित महाराणी इस राजकीय भार को भी अवश्य ही यथावत् वहन कर सकेंगी।

महाराज को अपने अंतिम कृत्य के सम्पादन होने में कुछ शंका थी, जिस कारण वह अपने जीवन से निराश हुए, चाहते थे कि गृहस्थ आश्रम को छोड़ कर संन्यास ले लें, किन्तु अयोध्या में कोई योग संन्यासी लभ्य न होने के