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प्रेमघन सर्वस्व

कारण, काशी से किसी परम योग्य संन्यासी को ले पाने के अर्थ अपने प्राइवेट सेक्रेटरी बाबू जगन्नाथ दास रत्नाकर बी॰ ए॰ को भेजा, किन्तु ईश्वर को अपने भक्त की अन्तिम अवस्था में व्यर्थ विधि व्यापार से विरूपता और शोभा शून्य इष्ट न थी, अतएव उन्हें उसी वेश और भाव से उपस्थित होने की आज्ञा हुई कि जिसमें वह इतने दिन संसार में स्थित थे।

महाराज की अवस्था अभी ५१ वर्ष की थी और वह निःसन्तान रहे, जिस कारण पाँच वर्ष पूर्व सं॰ १९०१ में श्रीमान् एक वसीयत नामा के द्वारा अपने समस्त राज्य की उत्तराधिकारिणी अपनी छोटी महाराणी को कर गये और उन्हें अपने पश्चात् किसी को उत्तराधिकारी अथवा दत्तक पुत्र लेने का भी अधिकार दे गए हैं। प्रशंसित महाराणी के प्रबन्ध में सहायता देने के अर्थ यदि आवश्यकता हो तो भारत गवर्नमेण्ट से किसी सुयोग्य सिविलियन सहकारी के नियुक्त करने और राज्य पर अधिक ऋण होने से उसके चुकाने की ममता के अर्थ कछ विशेष प्रकार से दया दृष्टि दान की भी प्रार्थना की है तथा 'कोर्ट आफ़ बार्डस' द्वारा प्रबन्ध होने का निषेध किया है। आशा है कि गवर्नमेण्ट उसे सादर स्वीकार कर अपनी उदारता का अवश्य परिचय देगी। क्योंकि महाराज न केवल देश भक्त थे वरञ्च वह पूरे राजभक्त भी थे। वह जैसे कि देश के सामान्य परोपकारी कार्यों में स्वार्थ लेते थे, वैसे ही गवर्नमेण्ट के भी अनुष्ठित कार्यों में पूरी सहायता करते थे। इसी कारण गवर्नमेण्ट उनकी सदैव सन्मान वृद्धि करती आई है।

अंत को हम लोग महाराज की अर्धाङ्गिनी महाराणी महोदयाओं से अपनी पूर्ण सहानुभूति प्रकाशित करते, यद्यपि उनके आश्वासन के अर्थ कोई उचित वाक्य नहीं पाते, क्योंकि उनका शोक असामान्य है, जिस कारण कि उनकी आँखों में समस्त संसार अन्धकारमय प्रतीत होगा, तथापि यही कहना उचित समझते है, कि ईश्वर की इच्छा को अटल और प्रबल मान कर वे धैर्य धारण करें और निज प्रिय पति की उज्वल कीर्ति की यथाशक्ति रक्षा करने में तत्पर हों। और तो

"दस द्वारे को पींजरा तामें पच्छी पौन।
रहिवोई अचरज अधिक गये अचम्भा कौन"॥

१९६३ वै॰ आ॰ का॰