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प्रेमघन सर्वस्व

की गई, विवाह कर ससुराल में भी जाकर मैके के तुल्य रही, वा ऋठिन क्लेश के कारागार में रह कुछ दिन तक मानसिक शाक सही, पर, जब वे भी कृपा निधान से लह गये, अर्थात् अमलोक की यात्रा को सिधारे, यदि आतरीय कृष्ट न हो तो भी बाहरी आलड्वाल का पीछा छोड़ता है, परन्तु वास्तव में न केवल एक प्रकार किन्तु अनेक प्रकार से क्लेश का कारण तो अवश्य ही होता है। चाहे कुछ क्यों नहीं, निदान जब हर तरह दुःख की आधकाई होने लगी, न्याय और धर्म का लेश न देख, व्यर्थ कौन क्लेश उठाये, चित में अपना,सा-शान ठान लिया, और अन्धेर नगरी चौपट राज में सब उलटा ही काज सीधा जान लिया, पुरषों को अन्याय और 'देश तथा कुलजन के निष्ठुरता का आँतरेय यही प्रयाजन जान, मन में निश्चय अपना सा अनुमान मान लिया, और उसकी आँखों मेधमाधमें सम जाम पडने लगा। सच है! महर्षि मनुभगवान अपनी स्मति के (नवमाध्याथ) के आदि में लिखते हैं कि "जो कि सुष्टि के आदिही में ब्रह्माने स्त्रियों का स्वाभाविक चित्त चलता से युक्त, प्रति के विरह की असहनशीलता इत्यादि गुणमय बनाया, अतएव सत्पुरषो से रक्षित स्त्रियों को भी मां का विकार होता ही है, और पति केचिरह से कामान्ध स्त्री स्वरूपवाय माकुरूपी और उत्तम अधम पुरूष का कुछ भी विचार नहीं करती, क्योंकि शय्या, आसन, अलकार के बताने का स्वभाव और काम, क्रोध, कठोरता, द्रोह, कुचाल इत्यादि स्त्रियों के लिये पहले बनाया गया। श्रागे तो ऐसी दशा में उनके घर के लोग उन्हें मार डाला करते थे कि आगे की आफतैं और उपद्रक नहीं होती थीं।

अब इस अगरेजी राज्य में वह न हो सकने से, खाने पहिनने तथा और कष्टकारक व्यापार तथा लात, घूसा, जूती पैमार, और धौल पप्पड क्या, किन्तु (प्राय, गुप्त प्रकार से) प्राण दण्ड भी करी डालते हैं। अथवा यहाँ तक कष्ट देते कि उन्हें लाचार हो किसी नीचे ऊँचे के साथ निकल जाना, या बाजार में खानगियों का पेशा स्वीकार करना या मरना होता सयोगात यदि ऐसा न हुआ, गर्भिणी हुई, तो प्रथम गर्भपात की वह वह उपद्रव और प्राणान्तक कष्टदायी व्यापार किये जाते, जिन्हें सुन कर पत्थर का भी कलेजा पनीजे और राक्षस के भी रोंगटे खडे हो अर्थात् ऐसी अवस्था में-जिसमे स्वास लेना भी कठिन, और जब अपने सिर के बालबदन को बोझ रहते लेटाकर चार चार स्त्रियों का पेट चढ़ना और पैर से पेट को रौंदना, कूदना, कि जिससे प्राय प्राण व्यय भी हो ही जाया करता है, यूँ ही बच्चों को काट काटकर