पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९४
प्रेमघन सर्वस्व

को रोकें, पर यह न समझे कि फिर इस फोड़े के मवाद की वृद्धि से इसकी क्या दशा होगी, वा दुष्ट रक्त रह जाने से इसका समग्र शरीर बिगड़ कर नष्ट हो जायगा, वा टूटी टँगड़ी को डाक्टर न काटने पावेगा, तो उसके कारण घायल मर जायगा। मैंने माना कि अनुभवी राज्य शासकों ने अनुचित स्थान से बहते पनाले वा नहर का अवरोध किया है, पर यदि उसके बन्द होने से 'वह मकान या नगर कि जिसका समग्र पानी उसी एक राह से बहता था कोई दसरी राह न पाकर गिर जाने तथा नष्ट होने पर कुछ भी ध्यान न दे, तो यह कौन सा न्याय और इंसाफ, तथा दया और कृपा है।

अब यह बतलाइये कि हम लोग कई करोड़ भारत की विधवायें क्या करें, और क्या कहें? क्या खाकर कैसे मरें, और कैसे इस असह्य दुःख को सहैं? क्यों कि जो जो आपत्ति विपत्ति थी और भी जो सब कहनी अकहनी बातें थीं, जहाँ तक मुझे सूझी और समझ में श्राई कह सुनाई। यह भी सुना जाता है कि किसी पश्चिम देश के नगर की बहुतेरी विधवानों ने 'गवर्नमेंट में एक निवेदन पत्र भेजा है कि "हम लोगों को स्वयंवर करने की आशा मिले, तथा और स्थानों में भी इस विषय का कुछ आन्दोलन हो रहा है, और मदरास से तो एक सभा ने महाराणी विक्टोरिया की सेवा में एक निवेदन-पत्र भेजा है, कि विधवाओं के विवाह होने के लिये कोई कानून जारी की जाय, इसी रीति बम्बई के हाईकोर्ट ने किसी ऐसी विधवा को जो पुनविवाह किया चाहती थी, जिसके सम्बन्धी उसे वारण करना चाहते और विवाह करने पर वस्त्राभूषणादि हर लेना चाहते थे, महान्याय गृह ने अकृस्कार्य किया, परन्तु हा! यह तो वह पापी पश्चिमोत्तर देश ही है जहाँ की स्त्रियाँ जिह्वा संचालन नहीं कर सकतीं और और की क्या कथा है! कदाचित यदि कोई यह कहैं कि धर्म विषयक कामों में गवर्नमेंट हस्तक्षेप नहीं कर सकती। तो प्रथम इसका उत्तर तो केवल इतना ही कह देने से मिल जाता है कि, सती होना भी तो धर्म था, इसमें क्यों गवर्नमेंट ने हस्तक्षेप किया और क्यों इसमें नहीं करती? क्योंकि ये दोनों बातें एक ही स्थान पर लिखी हैं, अर्थात् सती होना और पुनर्विवाह। फिर क्या कारण कि एक बात को तो आप बन्द करें, और दूसरे में धर्म का सम्बन्ध लाकर बोल भी नहीं? सर्व साधारण विधवाओं के लिये हमारे शास्त्र तीन श्राज्ञा देते हैं—उत्तम विधि "सती होना, 'अर्थात् पति के शरीर के साथ जल जाना" सच है! पतिव्रता निज पति-प्रेम यती स्त्रियों को अवश्य यही उचित है। दूसरे ऐसी स्त्रियों के लिये कि जिनके