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प्रेमघन सर्वस्व

औरसः क्षेत्रजश्चैवदत्तः कृत्रिम एवच।
गूढोत्पन्नोऽपविद्धश्च दायादा बांधवाश्चषट्॥
कानीनश्च सहोदश्च क्रीतः पौनर्भवस्तथा।
स्वयंदत्तश्च शौद्रश्चषड् दायदबांधवाः॥

अर्थात १ औरस (संस्कार से युक्त अपनी स्त्री में अपना उत्पन्न किया गया)। २ क्षेत्रज (नपुंसक, और व्याधि से युक्त अर्थात राजरोग वा आजन्म न छूटने योग्य कुष्ट इत्यादि का रोगी, वा मरे हुए मनुष्य की स्त्री में धर्म करके अन्य से उत्पन्न पुत्र), ३-दत्तक (आपत्काल में माता-पिता जल से प्रीति सहित समान जाति का अपना पुत्र जिसे देवें)। ४-कृत्रिम (समान जाति वाला गुण-दोष का जानकार पुत्र के गुणों से युक्त जिसे पुत्र बनावै), ५-गूढोत्पन्न (गृह में उत्पन्न ऐसा पुत्र जिसका यह न जाना जाय कि यह किससे उत्पन्न हुआ), ६-अपबिद्ध (निज माता पिता से त्याग किया" और दूसरे से ग्रहण किया गया), ७-कानीन (जो पिता के घर में बिना ब्याही कन्या ने एकान्त में पुत्र उत्पन्न किया उस कन्या से विवाह करने वाले का वह पुत्र), ८-सहोड़ (जानी अनजानी गर्भवती कन्या से विवाह होने पर जो पुत्र उत्पन्न हुआ तो उस विवाह करने वाले का पुत्र), ९-क्रीत (माता-पिता से जो पुत्र मोल लेकर बनाया गया हो), १०-पौनर्भव

(वापत्या वा परित्यक्ता विधवा वा स्वयेच्छया।
उत्पादयेत्युनर्भूत्वा स पौनर्भव उच्यते॥

अर्थात जिस स्त्री को पति ने त्याग किया, अथवा विधवा, अपनी इच्छा से दूसरे पुरुष की भार्या हो के उस दूसरे पुरुष से जो पुत्र उत्पन्न किया) किन्तु विवाहिता स्त्री पुरुष सम्भोग से दूषित न हो और दूसरे पुरुष का आश्रय करे तो उस पुरुष के साथ फिर से विवाह के योग्य होती है], ११-स्वदत्त (माता-पिता से रहित का त्याग किया गया, अपनी आत्मा को जिसै देवै वह उसका पुत्र), १२-शौद्र (शूद्र की कन्या से उत्पन्न पुत्र परन्तु ब्राह्मण पिता होने से उसका नाम पारशव होता है)।


कहाँ तक गिनाऊँ कि दासी तथा दासी की दासी का भी शूद्र से उत्पन्न भी पुत्र पूर्वोक्त पुत्रों के अभाव में हिस्से का भागी हो सकता है। और विधवा-विवाह के कर्तव्य होने में प्रमाण देने की यद्यपि मुझे बहुधा आवश्यकता नहीं, क्योंकि हम विचारियों पर, परम दया कर बड़े परिश्रम से श्रीयुत