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विधवा विपत्ति वर्षा

जो कुछ बुद्धि से वास्ता भी रखते हैं कहते हैं कि भाई! हमतो तैय्यार हैं पर अकेले हमारे कबूल करने से क्या हो सकता है, कोई पहिले करे हम देख लें कि उसकी क्या दशा होती है, तो हम भी करें। जो चित से बाहते भी हैं वे भी इसमें इन्ही के डर से अगुआ नहीं होते, कहते हैं कि कौन नक्कू होकर जात-पाँत से जाय; पर यह नहीं सोचते कि यदि कोई प्रथम न करेगा तो कैसे प्रचार होगा; सभी इसी रीति सोच सोच कर रह जायेंगे, मेरा तात्पर्य यह नहीं कि जिसका पति मर जाय सबी का—चाहे वह अस्सी वर्ष की बुढ़िया क्यों न हो—पुनर्विवाह कर दिया जाय। किन्तु यह अवस्था और इच्छा की बात है, केवल इसो को रोक टोक अवश्य उठ जानी चाहिये, क्योंकि देखिये, सुलोचना अपने पति इन्द्रजित् क साथ सती हो गई, पर मन्दोदरी ने विभीषण को पति करके भो आनन्द से जीवन व्यतीत किया, इसी रीति सुग्रीव से तारा ने व्याह किया।

यद्यपि मनु ने तैतीस वर्ष के बर के साथ १२ वर्ष की कन्या का विवाह का विधान किया है पर अब कलि में भला १२ वर्ष की कन्या के साथ २० वर्ष का तो वर हो! अर्थात् बाल्य-विवाह माता पिता की बेईमानी तथा बिना परस्पर इच्छा के अनुचित और अयोग्य रीति का विवाह बंद हो, और विधवाओं का पुनर्विवाह किया जाय। इसी रीति को आर्यों में प्रसिद्ध महाराज राजर्षियों में श्रेष्ठ वेणु ने जारी किया था, और महाराजधिराज शाहंशाह अकबर ने भी आज्ञा इसके प्रचार में तथा बाल्य-विवाह को बन्द करने में दी थी। फिर हाल ही में जापान के राज्य से यह आज्ञा हुई है, कि २० वर्ष से कम की अवस्था में पुरुष और १८ वर्ष से कम में स्त्रियों का विवाह न हो।

१९३८, वै॰ आ॰ का॰