पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२३६

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देश के अग्रसर और समाचार पत्रों के सम्पादक


जो घर बैठे अपना काम आप भली वा बुरी रीति से कर लेते हैं, उनसे प्रायः सर्व साधारण से सम्बन्ध नहीं रहता, इनमें निश्चय वह नहीं पा सकते जिन्हें भगवान ने दस के पालने और सुधारने का भार दिया है, उनके कार्यों से औरों का भी सम्बन्ध है। उनके अच्छे और सत्चरित्र होने से दस वैसे ही हो सकते हैं, उनके बिगड़ने से और लोग भी वैसे ही बिगड़ सकते हैं, परन्तु इनसे कहीं बढ़ा पक्ष उन लोगों का है जिनके कार्य दैवयोग से सर्व साधारण से सम्बन्ध रखते हैं, चाहे प्रारब्ध ने उन्हें यह योग्यता दी है, या वह स्वयम् ऐसे आप बन बैठे हैं। पहिले में राजा लोग और उनके कार्यकर्ता, तथा एक विजयी जाति पराजित जाति के ध्यान से गिने जा सकते हैं। दूसरे में समाचार पत्रों के सम्पादक और इतर राजनीतिश लोग आ सकते हैं। यदि राजा और उसके कर्मचारी अच्छे हैं, देश धन-धान्य से सुखी हो सब प्रकार से मनोहर देख पड़ता है। आज कल के कर्मचारीगण एक विजयी जाति द्वारा इस वृहत् भारत भूमि में शासन करने के निमित्त भेजे गये हैं। यह किस मुँह से कौन कह सकता है कि कर्मचारी सिविलियन व्यक्ति सराहनीय नहीं है। इनके कार्य के भार पर ध्यान देने पर और इनकी कठिनाइयों को विचारने पर जी यही कहता है कि जैसा कुछ प्रभुत्व भगवान ने इनके हाथ सौंपा है उसको जिस उत्तमता से यह निर्वाह कर रहे हैं कदाचित् पृथ्वी में ऐसे योग्य लोग कम मिलेंगे जो इस प्रकार कर सके। जिस देश में कभी आये नहीं जिसकी भाषा जानी नहीं, जिसके वासियों के अद्भुत और विचित्र व्यवहारों को स्वप्न में भी देखा नहीं, वहाँ संयोग से ऐसी कम अवस्था में भेज दिये जाना और अमित अधिकार को पा भी इस योग्यता से अपने कठिन कार्य को निर्लोभ हो निर्वाह करना, कुछ ऐसी सहज बात नहीं है। परन्तु वह विदेशी और अन्य मतावलम्बी हैं, उनकी उदारता मत और व्यवहारों के विषय में ऐसी है कि वह इस विषय को प्रजा की रुचि पर छोड़ दिये हैं, वह चाहे ओ मत ग्रहण वा त्याग करें उनसे कोई प्रयोजन नहीं है। उनका जो कुछ प्रभाव इस देश पर पड़ा है और जैसा कुछ कि उनका अनुकरण देश कर

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