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प्रेमघन सर्वस्व

कुटुम्ब मान उसके उद्धार को दौड़े और कोई अपने भाइयों को नास्तिकस्व में डूबते हुये न बचावै। कुछ अद्भुत् दुर्भाग्य के ये लक्षण हैं। हमारे देश के श्रेष्ठों को क्या यह सुन कर कुछ लज्जा आवेगी? क्या वह धर्म शिक्षा की ओर ध्यान देंगे।

फा॰, १९५१