पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२५

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कर के पंगु बना दिया था। आप राजा भरतपुर के वंशज थे और निर्वासित रूप में बनारस में अरदला बजार के पास एक बँगले में रहते थे। आप कवि लेखक तो थे ही आपको कल पुरजों के काम से भी बड़ी रुचि थी। संक्षेप में आप छोटे मोटे एक इंजिनियर भी थे। प्रेमधन जी का उनसे साख्य भाव ही था तभी तो उन्होंने उनके चरित्र को गुपत गोष्ठी गाथा तथा दिल्ली दरबार में मंत्री मंडली के यार के अन्तर्गत चित्रित कर के अमर बना दिया। निशाकर घर बैरिस्टर मिरज़ापूर के बाबू श्रीराम वकील थे जो पास ही में रहते और सदा प्रेमघन जी के साहित्य संगीत के समारोहों में भाग लेते और उनके मंडली को उत्साहित और सफल बनाया करते थे। नवाब दवेकरारूद्दौला का चरित्र नबाबी साम्राज्य के भग्नावशेष विभूतिधारी एक उनके मित्र का चरित्र है और इसका चित्रण आपके व्यक्तिगत निबन्धों में अद्वितीय और परम सफलता से विकसित हुआ है।

व्यक्तिगत निबन्धों में प्रेमघन जी ने जितनी पद्धता से सरलता और स्वाभाविकता का इन निबन्धों में समावेश किया है उतनी ही तत्परता से सामाजिक धार्मिक तथा ऐतिहासिक निबन्धों में भी इन भावनाओं को संनिविष्ट किया है। सामाजिक, धार्मिक, तथा ऐतिहासिक, निबन्धों के अन्तर्गत उनकी आत्मा तत्कालीन सामयिक परिस्थितियों से ओतःप्रोत हैं।

प्रेमघनजी के समक्ष हिन्दी गद्य लेखन कला में किसी लेखक का उदाहरण नहीं था! आपने अपनी प्रतिभा से अपनी शैली का निर्माण स्वयम्ं किया, जिसमें आपके कलम की कागैगरी की ही महानता थी। श्राप हर एक विषय तथा वाक्य फ़ो कलात्मकता प्रदान करके उसकी पूर्ण विवेचना करते थे। क्योंकि आपका उद्देश्य ही था:—

"कलम करी कारीगरी, कारीगर के हेतु,
कुटिलन को कारी छुरी, कारीगर धर देत।"

प्रेमधन जी ने खड़ी बोली के शब्दों का ही गद्य में प्रयोग किया, जिनमें मधुरता, मनोहरता तथा बोधगम्यता रहती थी। संस्कृत के तत्सम और तदभव शब्द अलंकारिक योजना के साथ प्रयुक्त होते थे। यथा “साहित्य सौदामिनी" "हास्य हरिलांकुर" "नियम निर्घोष" पर प्रेमघन जी के काध्य में परिस्थिति के अनुरूप उर्दू और फारसी शब्दों का भी वस्तु काल के अनुसार प्रयोग किया है। श्रापका विश्वास था कि मुसलमानों के मुख से संस्कृतयुक्त भाषा का प्रयोग उचित नहीं है। नबाब बेकरारुद्दौला का चरित्र इसका सद' उदाहरण है।