पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/२६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३१
भावी भारतीय महा सम्मिलन

श्रीमान् मिस्टर दादाभाई नैरोज़जी उसके सभापति के आसन को तीसरी बार सुशोभित करेंगे और देखेंगे कि उन के लालित-पालित शिशु की अब यौवनावस्था आ गई है। अतः कांग्रेस में अब की बार बहुतेरी नई बातें भी उसके कर्तव्यों के विषय पर अवश्य निर्धारित होंगी। राय बहादुर श्री युक्त आनन्द चारलू सी॰ आई॰ ई॰ ने, इस विषय पर हिन्दोस्तान रिव्यू में, एक बहुत ही समयोचित और उपयुक्त लेख में अपने विचारों को प्रकट किया है। उन का यह अग्रह बहुत ही उचित है, कि "कांग्रेस की बैठकों के पीछे उनका सभापति अपना पदत्याग न करे, किन्तु वर्षे भर उसी पद पर रहे, जब तक कि दूसरे अधिवेशन में कोई और व्यक्ति उस पद पर न चुन लिया जाय। जिससे कि बीच में कभी अवसर उपस्थित होने पर वह कांग्रेस की ओर से आवश्यक कार्यों को करता और उसके सिद्धान्तों को प्रकाश करता रहे। हर एक प्रान्तों के अर्थ भी एक एक सहायक सभापति उसी अवसर पर चुन लिये जायें, जिसमें वे भी वर्ष भर अपने अपने प्रान्तों का कांग्रेस सम्बन्धी कार्य किया करें।" निःसन्देह यदि इस रीति से कार्य किया जाय तो कांग्रेस विशेष पुष्ट हो जाय, और हर प्रान्तों के लोग चैतन्य हो वर्ष भर कुछ न कुछ करते ही रहें। नहीं तो जैसे जंक्शन स्टेशनों के मुसाफिरखाने थोड़ी देर गाड़ियों के आने पर, कोलाहल पूर्ण हो जाते और गाड़ियों के छटने पर फिर सन्नाटे में रहते हैं, वैसे ही हम लोग भी एक बार दिसम्बर में एकत्रित हो अपनी अपनी आवश्यकताओं की प्रार्थना गवर्नमेण्ट से कर, साल भर अखण्ड निद्रा में पड़े सोते रहते हैं। हम लोगों का प्रथम कर्तव्य विद्या और व्यापार विषयक होना परमावश्यक है। यदि हमारे शिक्षित जन इस विषय की योर एक चित्त हो ध्यान दे कुछ करने का संकल्प करें, जैसा कि बहुत से बंगाली युवकों ने अब करने को प्रतिज्ञा की है, गवर्नमेण्ट से बातकों की भांति स्वाती के बूंद पाने की जो आशा लगाए हुए हैं छोड़ दें क्योंकि कोई भी गवर्नमेण्ट हमारे निज के कामों को सुधारने, वा उस में योग देने के अर्थ तत्पर नहीं हो सकती, विशेष कर एक विदेशी प्रजा-तन्त्र राज्य, 'तो संवथा कांग्रेस के सभिकों को इस प्रकार वर्ष भर उनिद्रित रखने की उक्त लेखक महाशय की सम्मति अवश्य ही अति लाभप्रद होगी। फिर जैसी श्री वेङ्कटेश्वर समाचार कहता है कि "कांग्रेस इस समय लिखे पढ़े देशवासी मात्र की सभा है। इसलिये अङ्गरेज़ लोग यह कहने का अवकाश पा रहे हैं कि देश के जन साधारण से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।