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सर्वदेशीय वस्तु स्वीकार और विदेशीय वहिष्कार

होते हैं, परन्तु अब उन्हें कौन लेता है? इसलिये कि हमारी तो पसन्द ही बदल गयी है। हमारी रुचि और आवश्यकता में बहुत भेद पड़ गया है। भारतीय अब भारतीय नहीं रहे, वे अब साहेब लोग बनने की लालसा में मर रहे हैं। इसी से उन्हें भाँति भाँति की विपत्तियाँ झेलनी पड़ती हैं। परन्तु शोक! वे अपनी दशा को भूल कर भी नहीं सोचते।

अधिकांश भारत की बनी वस्तुओं में पुरानी ही रुचि और प्रणाली का अनुकरण किया जाता है जो अब क्रमशः कपूरवत् प्रायः लुप्त होती चली जा रही है। उसके स्थान पर जो नवीन वस्तुये प्रचारित हो रही हैं, उसकी आवश्यकता को स्वदेश से पूर्ण करने में बड़ी कठिनाइयाँ हैं। अतएव सर्वप्रथम हमें अपनी रुचि में परिवर्तन करना और आवश्यक नवीनता के निर्माण का यत्न करना चाहिये, जो कष्ट, व्यय और असाध्य है। इसी से स्वदेशी प्रचार के सम्बन्ध में हमें बहुत कुछ करना है, परन्तु यदि हमारा दृढ़ अनुराग हो। क्योंकि शोक से कहना पड़ता है कि बहुतेरी ऐसी आवश्यक नवीन सामग्रियां भी कि जो इस देश में बनती और मिलती हैं, हम उसे न लेकर जब तक द्वीपान्तर से नहीं मंगाते, सन्तोष नहीं लाते। हमारे चढ़ने की भाँति भाँति की गाड़ियाँ यहाँ भी मिली, तो भी यावत्सम्भव हम उन्हें विदेश ही से मंगाते, सब प्रकार के जूते यहाँ बनते, तौभी इस डासन ही का शू पहिनते। साबुन यहाँ भी अच्छे बनने लगे हैं, परन्तु बिना पिअर्स सोप के हमें बैन नहीं। इत्यादि २ कहाँ तक गिनायें, बहुतेरी उत्तम स्वदेशी वस्तुओं के लभ्य होते हुये भी लोग विदेशी ही पर टूटे पड़ते हैं, जिसका कारण केवल अंगरेजी का अनुकरण मात्र है। जो वह करें वही हमारे लिये विधि हो रहा है। हम लोगों को इतना विचार नहीं कि विदेशी लोग तो स्वदेशानुराग के कारण सात समुद्र पार से भी आकर यहाँ अपने देश के पदार्थ को कार्य में लाते और हम अपने देश की बनी वस्तुत्रों को छोड़ विदेशी पदार्थ ले ले कर भकुन्ना बनने के प्रत्यक्ष प्रमाण बनते हुये, अपने देश के उद्यम का सर्वनाश कर रहे हैं, जिस कारण कितने ही सुन्दर पदार्थ जो यहाँ बहुतायत से बनते थे अब देखने में भी नहीं पाते। निदान जब तक हम में स्वदेशानुराग न हो, अपने देश की वस्तुओं से सच्ची प्रीति न हो, अपने देशोद्धार की चिन्ता न हो, स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार कैसे सम्भव है? उसके लिये सर्वप्रथम उपरोक्त स्वभाव और गुण का सश्चय करना परमावश्यक है। स्वदेशीय वस्तु प्रचार के लिये विदेशी वस्तु बहिस्कार एक प्रधानाधार वा मुख्य साधन