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सर्वदेशीय वस्तु स्वीकार और विदेशीय वहिष्कार

और उड़ाते और अँगड़ाइयां लेते रहे। रुपया जब तक सामने खनकला रहा, एकशा नम्बरवन का नशा जमा रहा। जब उसकी खनखनाहट सात समुद्र पार जा बसी, नशा उतर गया। मुफलिसी की खुमारी आ सिर परसद बैठी। अब जो किसी भांति होश ठिकाने आया, तो देखते हैं कि चारों ओर दाने दाने के लाले पड़ गये है। लोग ताशा सा पेट बजाते भूखभूख चिल्ला रहे हैं। अपनी अंतड़ियां भी जब मरोड़ खाने लगीं, तो सोचने लगे कि बस, अब कछ कार्य करना चाहिये। परन्तु क्या करें कि कहीं से कोई आशय नहीं सकता। क्यों कि हमें एक सेवा वृत्ति हो का आधार दिखाई पड़ता था, उसमें अब और भी विदेशियों की भरमार है। यदि कोई और उद्यम किया चाहते, तो प्रथम तो कोई उद्यम दिखाई ही नहीं पड़ता, जो अपने पुरुखे करते थे, यदि उसे हठात् हम करना भी चाहें, तो कर नहीं सकते क्यों कि अभ्यास छुट गया है। जितनी सुगमता से आगे कार्य होता था, अब हमसे नहीं होता। उधर कलों की सहायता से स्वल्प मूल्य और श्रम से जो पदार्थ बनते, इमसे कैसे बनेंगे? फिर उस भाव में हम कैसे किसी को दे सकेंगे और क्यों कोई हमारे बनाये पदार्थ क्रय करेगा। यह तबी सम्भव है कि अब यहाँ के लोग केवल अपने ही देश के बने कैसे ही निकृष्ट और महँगे पदार्थ पर सन्तोष करें और कैसे ही सुन्दर और सस्ते विदेशी पदार्थ को भी न छुये, इसमें चाहे उन पर कितने ही कठिनाई क्यों न पड़े। इस रीति से कुछ ही दिनों पीछे ये सब अभाव अवश्य दूर हो जायेंगे, किन्तु आज तो बिना इतने स्वार्थ-त्याग के कदापि कुछ कार्य चलता नहीं दीखता।

सारांश जो वस्तुएं हमारे यहाँ बनती हैं, यदि वे विदेशी पदार्थों सी सुन्दर और सस्ती नहीं हैं, तो उन्हें तत्तुल्य करने की चेष्टा करनी चाहिये न कि उनका सर्वथा अभाव। उसका एकमात्र उपाय और कारण केवल उसमें निज रुचि का स्थापन मात्र है। इसी भाँति जो वस्तुयें अभी देश में अलभ्य हैं उनको देश में निर्माण करने की चेष्टा करना परमावश्यक है। जिसके अर्थ बहुत कुछ आत्मत्याग, देशानुराग, दृढ़ प्रतिज्ञता आदि गुणों की आवश्यता है। केवल विदेशी वस्तु वर्जन वा बहिष्कार की प्रतिज्ञा और प्रलाप करने ही में क्या फल हो सकता है। क्योंकि हमारी आवश्यकतायें बहुत बढ़ गई है, उनकी पूर्ति अवश्य ही करनी होगी। जब तक देशमें उनका अभाव है विदेशी वस्तु वर्जन एक प्रकार परम असम्भव है। इसी भाँति हमारी प्रकृति में भाँति भाँति के जो विकार उत्पन्न हो गये हैं, उनका संयम भी परमावश्यक है क्योंकि