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प्रेमघन सर्वस्व

जब तक मनुष्य में आत्म संयम न होगा, संसार उस के लिये भयावना बन जायगा। इसी से इस प्रश्न के सम्बन्ध में बहुत सावधानी सापेक्ष्य है। देश के अग्रसरों को बहुत ही सुगमाहित हो इस समय कार्यानुसरण करना चाहिये और सर्व सामान्य भारतीय प्रजा को प्रमाद शून्थ स्वदेशानुराग का व्रत लेते हुये अपने उचित उद्योग में संलग्न होना चाहिये जिससे अवश्य ही कल्याण की आशा है। क्योंकि ईश्वरानुग्रह से अब देश सुपुति अवस्था का विसर्जन कर बहुत कुछ चैतन्यता लाभ कर चला है।

कार्तिक १९६३ वैक्रमीय आ॰ का॰