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प्रेमघन सर्वस्व

भाइयों का भी भ्रम दूर हो चला है, स्वदेशी आन्दोलन के कारण उन्हें यह ज्ञात हो गया है कि हमारे उधोगों का फल यदि हमें न्यून, तो उन्हें अधिक लाभदायक है। कदाचिन कुछ दिनों में उन्हें यह भी निश्चय हो जाय कि देश के कल्याण के लिये प्रजा का परस्पर विरोध अति हानिकारक है। क्योंकि जैसे किसी गाड़ी के एक पहिये के टूट जाने से वह नहीं चल सकती, जोड़ों के एक घोड़े वा बैल के विरुद्ध गति अवलम्बन से उसकी दशा बिगड़ती, वैसे ही किसी देश की दो जाति की प्रजानों का परस्पर विरोध उसकी उन्नति का बाधक है। हमारे और मुसलमानों के अब कोई दोष का कारण भी नहीं है और राजनैतिक विषयों में विरोध, तो केवल मूर्खता है कि जो अनुभव द्वारा दूर हो रही है। रहा, धामि के विरोध उसके समून दूर होने का उपाय हम ऊपर कह चुके हैं। किन्तु वह बिलम्ब और कष्ट साध्य है। इसके अतिरिक्त यदि परस्पर सहानुभूति की वृद्धि हो जायता धमिक विशेष रह कर भी विशेष हानिप्रद नहीं हो सकता। इसी से हमें यथाशाक्त परस्पर विरोध के घटाने का उद्योग करना चाहिये। जहां तक हम देखते हैं वर्ष में केवल दो अवसर ऐसे उपस्थित होते है कि जो हम लोगों में द्वैष उत्पन्न कराने के हेतु हैं अर्थात एक हिन्द त्योहारों के समय मुहर्रम का आना और दूसरा उनका बकरीद पर गो हत्या करना। इसमें मुहर्रम के अवसर पर तो सब प्रकार से हमको उनके कथन का पालन करना चाहिये, क्योंकि उसमें जो हमारी धामिक हानि भी होती, यह किसी प्रकार सह्य है। हां बकरीद का अवसर अवश्य ही हमारे लिये अति संकट का है इसमें हमें उनसे क्षमा याचना करनी चाहिये और उन्हें भी इसमें हमें अनुगृहीत करना चाहिये। क्योंकि उनके धर्म के अनुसार उसमें केवल ऊँट, दुम्बा और बकरों की कुर्बानी उचित है। यद्यपि कुर्बानी करना सब के लिये अति आवश्यक भी नहीं है, जो कि उनके शास्त्र से प्रमाणित है। फिर इस देश की कृषि का काव्य गोवंश ही के सहारे चलता है और हिंद मुसलमान उसी के आधार पर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। अतः उसके वध से जो हानि होती है, उसे सब समझ सकते हैं। इसी से अनेक मुसलमान सज्जन भी इसे वैसा ही निकृष्ट समझते कि जैसा हम लोग समझते हैं। सुतराम् उन्हें न केवल परस्पर विरोध शान्त्यथ वरख देश रक्षाथ गोवध का त्याग करना उचित है। योही हम लोगों को भी यथाशक्ति उस अवसर पर विरोध और उपद्रव को बचाना ही चाहिये। एवम् यथाशक्ति किसी अवसर पर कोई ऐसा कार्य न करना चाहिये कि जिससे