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प्रेमघन सर्वस्व

मिलेगी।' नेताओं की ऐसी बातें उचित हैं, या अनुचित, इसका ख्याल मुसलमानों ने कभी नहीं किया। इसी कारण वह जहां गिरे, वहीं पड़े हैं। अपनी ऐसी दशा के कारण वह जहाँ घुसे, उनकी बेक़दरी हुई, वहीं उन्हें शर्मिन्दा होना पड़ा। यदि हम अपना बुद्धि से काम लिये होते, नेताओं पर भरोसा न किए होते, तो उनकी बातों का मर्म हम पहिले ही समझ जाते।"

"हमें सदा यही सिखाया गया, कि 'हिन्दू अराज-भक्त प्रजा हैं उनसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं।' ईश्वर को अब भी हमारी आँखें खुलें, हम देखें कि हमने अपनी पालिसी में और हिन्दुओं ने अपनी पालिसी में क्या लाभ उठाया। सरकार या हमारे नेता चाहे कुछ कहें, हम हिन्दुओं से अलग नहीं हो सकते। बुरे या भले के लिए हमारा उनका चोली दामन का साथ है। हम दोनों एकही मातृभूमि के पुत्र हैं। धर्म सम्बन्धी मुसलमलों में हम और चीन या ज़ञ्जिवार के मुसलमान एक हो सकते हैं। पर राजनैतिक मुआमलों में क्या हिन्दू और क्या मुसलमान या ईसाई सब एकही नाव में सवार हैं। हमारे नेताओं ने हमारी आँखों पर ऐसी पट्टी बांध दी है कि इतनी सीधी बात भी हम नहीं समझ सकते।"

"बीस वर्ष पहिले जब कांग्रेस का आन्दोलन उठा, हम जान बूझ कर हिन्दुओं से अलग रहे, केवल इसलिये कि हमें अच्छी अच्छी नौकरियां मिलेंगी। पर क्या ऐसा हुआ? नहीं, हम तो दिन दिन गिरते ही रहे और हिन्दू बराबर उन्नति करते रहे। अंग्रेजों में चाहे कुछ भी ऐब हो, पर कदर शनासी का उनमें बहुत बड़ा गुण है। निष्पक्ष और निडर होकर आलोचना करने के लिए वह हिन्दुओं की बहुत इज्जत करते हैं। पर हमसे वह दिल से घृणा करते हैं। केवल इसलिए कि हम बड़े खुशामदी और राजनैतिक मुसलमालों में बोदे हैं। हम समझते थे हमारे हिंदुओं से अलग रहने के कारण सरकार हमसे 'खुश होगी। उसके हर विभाग में हमी हम होंगे। पर क्या ऐसा हा? कलकत्ता हाईकोर्ट में इस समय तीन हिन्दू जज हैं, पर मुसलमान एक भी नहीं। क्या कलकत्ते के मुसलमान वकील बारिस्टरों में एक भी जज बनाये जाने योग्य नहीं था? यदि नहीं था, तो क्या मुसलमानों का दिल बढ़ाने के लिए सरकार इलाहाबाद या लाहौर के मुसलमान वकील या वारिस्टरों में से किसी को जज नहीं बना सकती थी पर ऐसा न हुआ। हमारे नेताओं को बदौलत ही हर विभाग में हम अयोग्य समझे जाते हैं। कारण इसका यह भी है कि न तो मुसलमानों में एका है और न उनको कोई राय