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भारतीय प्रजा में दो दल

है। हम यदि चाहते हैं कि हमारी बात सुनी और पूछी जाय, तो हमें चाहिये कि अपने नेताओं की सीख भूल जायँ, स्वयम् विचारें, स्वयम् अपनी भलाई जुराई का ध्यान रखें।"

"सरकारी रियायतों पर विश्वास रख कर उन्होंने लिखना पढ़ना नहीं सीखा। वह समझते थे, कि हमें इसकी कोई जरूरत नहीं। बेपढ़े ही सरकार हमें नौकरियां देगी। पर यह उनकी बड़ी भूल है। अब स्वदेशी आन्दोलन लीजिये इसकी बाबत भी पूर्वोक्त नेताओं ने मुसलमानों को सुझाया, कि "वास्तव में यह हिन्दू मात्र का आन्दोलन है और राज भक्ति के विरुद्ध है।" इस मुआमले में भी यदि मुसलमान स्वयम् विचार करके देखते, तो उन नेताओं पर विश्वास न करते। क्योंकि उन्हें मालूम हो जाता कि हिन्दुओं से अधिक मुसलमानों ही का इसमें लाभ है। कोई मुसलमान जिसे ईश्वर ने जरा भी बुद्धि दी है क्या इस बात से इनकार कर सकता है कि समस्त देश के जुलाहों को इस आन्दोलन से लाभ नहीं पहुँचा? क्या कलकत्ते के भूखे सरते गरीब मुसलमानों को बड़ी बनाने से रोटी का सहारा नहीं हो गया? अधिक शिक्षित होने के कारण हिन्दू मुसलमानों की अपेक्षा अधिक नौकरियाँ पा सकते हैं। तब विचारे अनपढ़े मुसलमानों का एक मात्र सहारा ऐसे ही छोटे-छोटे व्यापार हैं। इन्हीं से वह अपने परिवार का पेट पाल सकते हैं। इस से स्पष्ट है कि स्वदेशी आन्दोलन से अधिक लाभ हिन्दुओं की अपेक्षा मुसलमानों ही को पहुँचेगा और पहुँचाया है। अतः मैं अपने सुसलमान भाइयों से प्रार्थना करता हूँ कि राजनैलिक मुआमलों से अलग रहना छोड़कर यह हिंदुओं से मिल जायें और सब मिलकर अपनी मातृभूमि की भलाई सोचे यदि सब मुसलमान यहाँ से अरब, ईरान या तुर्किस्तान चले जाये तो और बात है, पर जब तक वह इस देश में रहें, उन्हें हिंदुओं से मिल करके चलना होगा। राजनैतिक विषयों में इन दोनों का एक ही उद्देश्य होगा। हमारे हाकिम जैसी हुकूमत आज कल करने लगे हैं, उसका कारण यही है कि हम में फूट है। एक मसल है—"एक रहेंगे जीयेंगे, अलग होंगे मरेंगे।" ठीक यही दशा हमारी है। यदि हम सब एक रहेगे, सरकारी कर्मचारी हमारे शरीर और हृदय को गुलाम न बना सकेंगे। उनकी नव्वाबी और दबाव को इम अच्छी तरह रोक सकेंगे। यह सब जानते हैं कि इस समय बंगाल पर घनघोर घटा छा रही है। सब इससे विचलित हुए हैं। हमारे एक रहने से यह घटानायी। कल आशायें जो हमें घेरे हुए हैं, गायब हो जायेंगी।