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प्रेमघन सर्वस्व

और अन्त में हम अपने बाद अपने बच्चों के लिये बंगाल को कुछ और खुशहाल बनाकर छोड़ जावेगे।"

निदान, अब वह समय है कि भारत की प्रजा में दो दल अथवा कयी दल क्यों न हो, परन्तु उन्हें परस्पर का द्रोह और विरोध भूल करते हुए ऐक्य उत्पन्न कर आपस मे मिलकर देश के हित साधन मे सलग्न होना चाहिये। क्योकि इसी कारण भारतवर्ष की ऐसी हीन और दीन दशा हुई है। और जब तक यह विरोध याही बना रहेगा इसके उद्धार का कोई उपाय न होगा। सुतराम् हिन्दू और मुसलमान दोनों दल को अब अपने अपने आग्रह को शिथिल करके परस्पर स्नेहवर्धन मे यत्नवान् होना चाहिये।