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रंग की पिचकारी

किये बिना नहीं रह सकते और हँसकर उन्हें प्रेमालिङ्गन किये बिना नहीं मान सकते। अवश्य ही वे बहुत दूर पड़े हैं, किन्तु मन उनसे बहीं मिलकर इन कार्यो के करने में समर्थ है, अतः वह अपना कार्य कर अपराध की क्षमा चाहता है।

हमारा होली का त्योहार हँसी ठठोली, बोली ठोली और गाली गलौज के अर्थ भी विख्यात है। वास्तव में हर्ष का चिन्ह भी यही है, आनन्द मनाने का नियम भी यही है और सच पूछिये तो इस होलिकोत्सव का वास्तविक सत्कार भी यही है। हाँ, अवसर और पात्र तथा उसके प्रयोग के प्रकार का विचार अवश्य है; क्योंकि इसके विरुद्धाचरण से फल विपरीत होता है। सो सहृदय पाठकों की कृपा से होली बीत जाने पर भी उसका अवसर उपस्थित है, अब पात्र का विवेक मात्र और सापेक्ष्य है। पात्र हमारे प्रिय पाठकों से बढ़ कर कोई मिलता कब है। मिले भी तो उसकी इतनी प्रतिष्ठा कहाँ कि वह इस सत्कार का भागी हो सके। इसी से अब हम उन पात्रों के तीन भेद कर अर्थात् पात्र, सुपात्र और कुपात्र तीनों के अर्थ अलग-अलग यथा योग्य तीनों सत्कार का प्रयोग करके होली मनाने का प्रयत्न करेंगे।

लोग तीन का नाम सुन चौंकगे कि "भाई! यह तीन कैसा? नहीं नहीं डाने की कुछ बात नहीं है। हम अपने ग्राहकों के तान भेद कर उनके अर्थ होली के तीनों सरकार का प्रयोग करेंगे। जैसे कि एक सामान्य सुपात्र कि जिन्हें छ परलोक में यमदंड और इस लोक में उपहास का भय है, इस पत्रिका पर यथार्थ अनुराग के कारण जिन्हनि कादम्बिनी का यदि सब नहीं तो कुछ माल्य दिया है। उनको हम सामान्य बोली ठोली ही से सत्कार करते हैं और वह केवल एकमात्र कि-कृपाकर निज कृपा विस्तार पूर्वक अब शीघ्र मूल्य दे दीजिये और हमारा अनन्त धन्यवाद ग्रहण कीजिये। दूसरे श्रेणी के पात्र हमारे वे बेखबर पत्र पाठक कि जो पत्र तो जब मिला खोलकर अपने मनोरञ्जन में प्रवृत्त हुए, किन्तु दाम देने की कोई आवश्यकता ही नहीं समझते। कदाचित उनमें कुछ लोगों के ध्यान में-यदि कभी कुछ मूल्य देना पड़ेगा-समाता भी होगी, तो तबी कि जब उन पर कठिन चाँप चढ़े, क्योंकि सामान्य सूचना वा काडों का पचा जाना तो उनके अर्थ सदा सुलभ है। अत: उनकी सेवा में दितीय श्रेणी का सत्कार समर्पण कर हम यह प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर के निहोरे कुछ धर्म का भय भी विचार अब मूल्य भेजने की दया दिखायें और में अनुगृहीत बनायें तथा अधिक न सतायें। हम पत्रों से अधिक खोद विनोद