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भारतवर्ष की दरिद्रता

है। यहाँ की दरिद्रता के कारण को विचारने और कहने पर बातें प्रत्यक्ष हो जाँयगी।

यह बात प्रत्यक्ष हैं कि जो देश बहुत घना बसा है वहाँ के वासियों को यदि कई प्रकार के मार्ग धन के उपार्जन के न हों तो एक ही दो अथवा तीन के रहने से उनमें भीड़ बड़ी हो जाती है इसी से लाभदायक अथवा सर्वपोषक नहीं हो सकते। यहाँ के वासियों को मुख्य एक ही मार्ग और नाम के वास्ते ३ मार्ग द्रव्योपार्जन के बच गये हैं, वनिज अथवा व्यापार कृषि और नौकरी।

व्यापार की दशा जैसी कुछ इस देश में आगे थी उसके समक्ष में आधुनिक व्यापार को किसी अंश में कोई ममताओं को पहिनते, बर्तते और काम में लाते थे एवम् अन्य देशी वस्तुओं के अनुपस्थिति से इन्हीं को स्थान मिलता था और धनाढ्यों के घर में जितनी सामग्री सजावट के अर्थ काम में लाई जाती थीं देशी ही रहती थीं। परन्तु परदेशी जहाज़ों के आगमन से यन्त्र निर्माणित, अल्प व्यय के कारण सर्वजन सुलभ वस्तुओं के सामने यहाँ की बनी पुराने चाल की भूखे ग्राहकों को कैसे रुचिकर हो सकती थी। निदान सांसारिक विषय में कुशल चधड़ चतुर विलायतियों की सस्ती स्वच्छ वस्तुओं के हिन्दुस्थानी पण्यों में प्रवेश पाने से और फ्रीट्रड की आज्ञा इस देश के शासकों के देने से धीरे २ देशी व्यवसाय निष्फल हो 'चले और व्यापार के क्षेत्र में पराजित होने से पूजी तक गवां इतर दोनों मार्गों में इस कक्षा के मनुष्यों ने प्रवेश करना प्रारम्भ किया और जो कुछ शेष बच गया है वह भी कुछ दिन में नष्टप्राय हुआ चाहता है। कारण इसका प्रत्यक्ष है हमारे देश का यह स्वभाव है कि कभी कोई कार्य दस जन मिलकर नहीं कर सकते और विलायती व्यवसायियों के सामने जो सदैव कम्पनी द्वारा बड़े २ साहस करते हैं कभी अकेले मनुष्य का किया कुछ नहीं हो सकता चाहे कितना हूँ धनी क्यूँ न हो; क्योंकि अकेले की अवधि बहुत थोड़ी होती है और कम्पनियाँ बहुत काल पर्यन्त भी जीवित रहती हैं। हमारे देश के मनुष्य क्यों एक साथ मिलकर कार्य नहीं कर सकते? क्यों इन्हें एक दूसरे पर भरोसा नहीं रहता? इसका कारण हम केवल दुर्भाग्य दुद्धि और प्रमाद समझेंगे। इसमें सन्देह नहीं है कि यदि दृढ़ता के साथ ऐसे कार्य किए जाय और स्वच्छ व्यवहार के साथ उचित मनुष्य नियुक्त किये जायं जो ऐसे कार्यों को कर सकते हों और हर प्रकार से इसके उत्तर