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भारतवर्ष के लुटेरे और उनकी दीन दशा

मस्तिष्कों में संसार-सिद्ध बातों ही के विरोध में लिखा है, उनके अत्याचार का ठिकाना ही क्या है। पृथ्वी में कौन सा ऐसा मत है और हुआ है जो निर्दयता की सीख देता है और दे गया है, पर यदि जीवों पर दया दृष्टि नहीं है तो इसे हिन्दू राक्षसी मत के अतिरिक्त और कही क्या सकते हैं, परन्तु इन को इनके बड़े दयावान, धर्मशील, महात्मा मुहम्मद ने अपने मत में लोगों को लाने के अर्थ अनुचित बल का आश्रय लेने को आज्ञा दी, क्या हो उत्तम विचार है। कैसी कुछ इसी एक बात से इनके मातमी मत की निःसारता झलक पड़ती। संसार भर के जीवों से परमेश्वर ने मनुष्य को विशेष समझदार और विवेकवान बनाया इसे अपने भले बुरे की समझ पूर्णरूप से दी गई है, यदि वह किसी अवस्था में परम सन्तुष्ट है और समझाने बुझाने से भी वहीं अपनी भक्ति, अपने अनुराग की राग में मस्त है, उसे छोड़ आँख उठाकर भी फंसाऊ और बतोलिये उपदेशक की ओर नहीं देखता, तो खड्ग ले तर्जना देने से वा उसे टूक टूक उड़ा देने से कुछ हिंसक के मत की प्रशंसा हुई। निश्चय प्राण देना कुछ सहज बात नहीं है, जब सकट मे मनुष्य पड़ता है, क्यो नही कर डालता। यही कारण था जो बहुत से हिन्दू नाना यातनाओं के भय से वर्जित भोजन खाना स्वीकार कर इस हिन्दू मत के विशाल पवित्र और उच्च आसन से नीचे घसीटे गये और सदैव के लिये यह उन्हें अनभिगम्य हो, यदि और मतों के सहश यह मी सुलभ होता तो कितने जो बलात्कार इच्छा के विरुद्ध मुसलमान बना लिये गये, और जिनके परिवार अबतक भी उस घृणित व्यापार को करने से भागते जिसके कारण आज कल इतना उत्पात हो रहा है, कभी हिन्दु बना लिये गये होते, परन्तु हिन्दूमत तो पृथ्वी में एक ही मत है जो न दूसरे को अपने पास बुलाता और न भगेणुओं का पीछा करता, गए सो गए, फिर इसके किसी काम के नहीं उन्हें तो स्पर्श करते भी इसे लत लगती है। यह कैसी बात है। इसके गौरव और गूढ़ता की झलक तो इतने ही से प्रकट है अपने बल, दृढ़ता, उत्तमता और पूर्णता का इसे उचित अभिमान है। तो जिसके मत मे ऐसी निर्दयी आज्ञा का पालन श्रेय माना जाता है, उनके और इतर देश के साथ बर्ताओं की क्या दशा होगी। इनके आगमन से उस पवित्र हिन्दू रहन सहन मे कैसा आघात पड़ा उसको अनुभव करने और इधर वर्तमान विकृत दशा उसी की देखने से प्रत्यक्ष हो जाता है, परन्तु मुसलमानों को जो कुछ करना था वह इसी देश में रह करना था, हमारे धर्म और व्यवहारों में बाधा हमारे ऊपर अधिक अत्या