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भारतवर्ष के लुटेरे और उनकी दीन दशा

वह समाज का कड़ा बन्धन जिसके ढीले हो जाने से अब मनमानी कार्यवाहियाँ हो रही हैं, पहले ऐसा दृढ़ था कि अपने-अपने उचित् कम्मों में लोग लीन थे राजा के न्याय के कठिन ग्रन्थि से वह अथित था छूट कैसे सकता था; परन्तु अत्याचारी विषयी विदेशियों ने इसे सैकड़ों वर्ष हुऐ अपने अन्यायी हाथों से तोड़ डाला। इधर अनुचित विषयों में स्वच्छन्दता के प्यारे पश्चिमीय परदेशियों के आगमन से जो नाम मात्र बचा बचाया कुछ समाज का गौरव था वह नष्ट हो गया। अदालत ने वह खेल दिखाई कि सब अपने अपने को चतुर नासमझ दौड़ दौड़ कर अदालती रंगभूमि में लीला दिखाने को तत्पर हए। कोई ऐसी बात ही नहीं जिसका घर बैठे न्याय हो सके। अदालती लुटेरी नटियों के हाव भाव ने इनको अपने वश में रख वारांगनाओं की भाँति जब तक उनमें धन का कुछ स्वारस्य पाती चुम्बक सी उनके अस्थिमात्र लौह शरीर में लपटी रहतीं। प्रजामात्र इन वस्त्रमोचन करने वालियों से दरिद्र और दुःखी हो गई है। मूर्ख देश आपस ही में लड़-मर रहा है। सब जानते हैं कि इससे हानि के अतिरिक्त और कुछ उठाना नहीं है, परन्तु उनकी तृप्ति बिना उसके चौखट तक गये नहीं होती। जितने अन्यायी हैं उनको यह बड़ा भारी आश्रय मिल गया है। बली सदैव निर्बल को इन दिनों दबा सकता है। वह धन और अधिकार के कारण कभी भी इन्हीं पंथों की शरण ले सकता, क्योंकि पंचों के पास बातें वैसी झूठी नहीं चल सकतीं यदि पंच न्यायी और योग्य हैं, जैसी कि अदालत में चलती हैं। पंच प्रायः उन्हीं विवादियों के समीप ही रहने वाले होते, वह उनकी बातों को जानते, इसी से शीघ्र ही निर्णय कर दे सकते। यह धन और अधिकार से युक्त अन्यायी को कब भा सकता है। उसकी इच्छा तो यह है कि अदालत से जल्दी निर्णय होती ही नहीं अधिकार के सुख तथा आप को अपने हाथों से क्यों छोड़ें, जो होगा होगा कोई ग्राम कोई नगर और कोई स्थान भारत भूमि में ऐसा नहीं जहाँ यह न होता हो। यहाँ तक कि पति और पत्नी पिता और पुत्र भी अदालत करने पर तत्पर हैं। समाज और कुटुम्बी का भय उनको कैसे हो उन्हें अदालत करते कौन रोक सकता है। यह मुसल्मानों के समय में न था, लोगों को पास पास के प्रतिष्ठित लोगों का कहना मानना पड़ता था, यही कारण था कि लोग अपने मन के नहीं हो सकते थे। ऐसी घृणित निर्लज्जता भी नहीं देखने में आती थी। अब अंगरेजी राज्य के उदार नियमों के कारण विषय का खुला बाजार लगा है। सत्चरित कदाचित् कुछ दिनों में देखने में भी न