पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३१

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और यथाशक्ति अपने अपने शक्त्यानुसार इसका सन्देश लेकर आधुनिक हिन्दी के प्रथम उत्थान में अपना सहयोग प्रदान किया।

प्रेमधन सर्वस्व भाग २ को हमें हिन्दी संसार के समक्ष उपस्थित करने में अत्यन्त प्रसन्नता होती है। हमने इसके अन्तर्गत ६ खण्ड किए हैं। खण्ड। में आपके साहित्यिक निबंध नियुक्त है, इसके अन्तर्गत जिलने लेख संनिविष्ट वे सब क्रमिक विकास के अनुसार संग्रहीत हैं जिससे प्रेमधन जके गद्य के क्रमिक विकास का पाठकों को पूर्ण आभास मिल सकता है।

खण्ड २ में आप के व्यक्तिगत निबंधी हैं, जिनके अन्तर्गत प्रेमघन जी की भाषा परम प्रौढ़ हो जाती है और आप की प्रतिभा का पूर्ण विकास हमें उसके अन्तर्गत मिल जाता है।

खण्ड ३ में सामाजिक तथा धार्मिक निबंध रखे गए हैं जिनके द्वारा हमें प्रेमधन जी के जागरूक और समाज तथा धर्म के सुधारक रूप का पूर्ण आभास मिल जाता है।

खण्ड ४ आप के ऐतिहासिक निबंधों का सदसमुच्चय है, इसके अन्तर्गत उनकी भारतीयता तथा उनका देश प्रेम जितनी प्रचुरता से उनके गद्य में प्रस्फुटित हुआ है प्रत्यक्ष हो जाता है। प्रेमधन सर्वस्व भाग १ में कजलियों के सामाजिक गात आप लोगों ने देखा हो होगा। पर उसके ऐतिहासिक तथ्य को कोई तब तक नहीं समझ सकता जब तक वह "कजली कुतूहल" से अनभिज्ञ है। कजली कुतूहल के अन्तर्गत कजली के त्योहार, कजर—हिया के मेले, दुनमुनिया के मेले की मनोरंजक कहानी तो दी ही गई है वरञ्च मिरजापूर जहाँ कजली का त्योहार बड़ी सज धज से होता था वहाँ का तत्कालीन हातहास बड़ी मनोहरता से व्यक्त है। ग्राम्य ग.तों में कजली की जो विशेषता है तथा उनमें कैसे सुधार होने चाहिए यह भी प्रेमघन जी ने बड़ी पटना से व्यक्त किया है। तृताय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति के आसन से प्रेमचन जी ने जो भाषण दिया था वह भी अपना ऐतिहासिक महत रखता है।

खएड ५ में प्रेमघन जी के आलोचनात्मक लेखों का क्रमिक विकास है...जो समय-समय पर उनको पत्रिका द्वारा तत्कालीन हिन्दी समाज के लिए लिखा गया था और आज हमारे आलोचना साहित्य के इतिहास का प्रथम अध्याय बन गया है।