पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९१
नागरी के पत्र और उनकी विवाद प्रणाली

स्थान-स्थान से एक-एक नवीन शब्द प्रयुक्त अनेक भारत धर्म महामण्डल और उनके संस्थापक, अधिष्ठाता और आचार्यों सहायक और शुभचिन्तकों के नाम भी सुनाई पड़ने लगे। सब के मनसूबे और मनोरथों के बवण्डर आकाश पाताल एक करते हुए उड़ चले, कि जिनकी गति देख कर त्रस्त होना पड़ता ह। भला क्या कोई सामान्य बुद्धि का भी उदासीन व्यक्ति इसे स्वीकार कर सकता है, कि इतने मण्डलों के होने से कभी कोई शुभ फल भी फलेगा? अथवा इनमें से कोई भी महामण्डल के वास्तविक उद्देश्य को पूर्ण कर सकेंगे? वा स्वयम् कृतकार्य होंगे? केवल इसके अतिरिक्त इनका और क्या फल होता है, कि वे सब स्वयम् कुछ-कुछ चिल्ला चिल्लाकर चुप हो जाय, या कुछ अंश को इसके छीन इसे छिन्न-भिन्न कर आप भी अपनी असमर्थावस्था ही में विलीन हो जायें।

मनुष्यों में मत विरोध का होना कुछ विचित्र नहीं है। एक समुदाय वा व्यक्ति विशेष की यदि दूसरे से नहीं पटती तो अवश्य ही वह उसी कार्य को दूसरी रीति से अपनी रुचि के अनुसार कर सकता है। परन्तु म इस रीति से कि मूलउद्दिष्ट ही का नाश हो जाय। इङ्गलैंड आदि देशों की पार्लियामेण्ट आदि महासभाओं में भी कई दल रहते, जो निरन्तर एक दूसरे का विरोध ही करते रहते हैं। समय-समय पर एक दूसरे से प्रास्त भी हो जाते, तौभी विरुद्धांश के अतिरिक्त अन्य सबी कार्यों में वे जिन कार्यकर्ताओं के सहायक रहते, और, मूल कार्य में कहीं से कुछ भी हानि नहीं होने देते। अब यदि हमारे बिखरे धर्म प्रेमियों में भी केवल मत मात्र का विरोध और वस्तुतः सच्चा धर्म का अनुराग होता, तो वे सुगमता से मण्डल में रह कर भी अपनी कार्यकुशलता और उद्योग सफलता का उदाहरण दिखला सकते थे। अलग भी उसकी शाखा वा सामान्य धर्म सभा के द्वारा उस्कृष्ट धर्म सेवा कर उसके सर्वोपरि सहायक बन सकते थे; नतु प्रतिपक्षता की पताका उड़ाते उसकी रोकने पर बद्धपरिकर होते।

अत्यन्त पारिताप का विषय तो यह है कि सदा से यहाँ ब्राह्मण ही लोग, जो धर्म ही के लिये बनाये गये थे, धर्म ही जिनके जीवन का उद्देश्य था, और जिन्हीं के आधार पर धर्म की स्थिति थी धर्म के उपदेष्टा, अधिष्ठाता और रक्षक थे आज समय के फेर से बहुतेरे उन्हीं में से इसके प्रतिकूल आचरण कर रहे हैं अनेक लोगों के इस आक्षेप के, कि—"ब्राह्मण ही लोगों ने धर्म का नाश किया, देश का नाश किया, आर्य जाति को धूलि में मिला दिया।"