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नागरी समाचार पत्र और उनके सम्पादकों का समाज


इसी से उसके पूर्व इस प्रश्न पर पूर्ण विचार और वादानुवाद होकर सब विषय स्थिर हो जाना चाहिये। किन्तु जब लोग परस्पर का ईर्षा द्वेष छोड़कर स्थिर रूप से प्रति वर्ष एक स्थान पर मित्र भाव से एकत्रित होना चाहें और यथा शक्य उन सब नियम और मन्तव्यों के पालन में दृढ़ रहना चाहें कि जो उक्त होने वाले समाज में निर्णिति हों। क्योंकि आगे एक बार हिन्दी पत्र सम्पादकों के समाज की रचना हो चुकी है, परन्तु कदाचित् एक वर्ष से अधिक उसका नाम भी नहीं सुना गया और न उसके द्वारा कोई सुकार्य्य वा सदनुष्ठान ही हो सका।

उपसंहार में हम अपने उन सब माननीय प्रिय सहयोगियों से जिनके हमने शुद्ध भाव से कुछ कुछ दोष दिखाये हैं, अति विनम्रता पूर्वक क्षमा माँगते हैं, इसलिये कि हम उनके दोषों को अपना सा दुःख होता था। अन्य निज दोष समझते और उनकी स्वरूप हानि से हमें निज स्वरुप हानि का हम यह कदापि नहीं चाहते कि हम लोगों में किसी प्रकार का मनस्ताप वा ग्लानि पहुँचै;—

"अतोर्हसी क्षन्तुमसाधु साधुवा हितम्मनोहारि च दुर्लभम वचः।

श्रावण १९६३ वैक्रमीय आ॰ का॰