पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
 

नेशनल काँग्रेस की दुर्दशा


हम विगत मेघ में अपनी यह आशङ्का प्रकाशित कर चुके थे कि सूरत में पहुँच कर कहीं काँग्रेस को दूसरी ही सूरत न हो। सो वास्तव में वहाँ पहुँच न केवल उसकी दूसरी[१] सूरत हुई, वरंच सचमुच अवस्था ही दूसरी हो गई। जिस कारण हमारे विपक्षी अब यह कह कह कर प्रसन्नता से विक्षिप्त हो चले हैं, कि "काँग्रेस टूट गई; भारत राष्ट्रीय महापरिषद्[२] की इतिश्री हो गई।" अवश्य ही इस कर्णकटु वाक्यों का सुनना सर्वथा असह्य है। परन्तु क्या किया जाय कि भारत के दुर्भाग्य से हमें सबी कुछ सुनना और देखना सुलभ है। हम लोग यही समझते थे कि यदि कदाचित आदि में कछ नीरसता भी हो जायगी, तो लोग अन्त कदापि भ्रष्ट न होने देंगे और किसी कवि के कथनानुसार—

"जब व आगया मेरे सामने, न तो रञ्ज था न मलाल था।"

एक स्थान पर एकत्रित होते ही दोनों दल भातृ-स्नेह के उद्गार और देशोद्धार उत्कंठा के वशवर्ती हो पारस्परिक द्रोह दुराग्रह को भूल अवश्य ही दध चीनी से मिलकर सामाजिक एकता के स्वाद को बढायेंगे। किन्तु शोक से यही कहना पड़ता है कि उन्होंने प्रेम की चीनी के स्थान पर प्रमाद का नींबू निचोड़ उस ऐक्य दुग्ध को फाड़कर काँजी बना डाला!!!

गत मेघ में हमने यह भी लिखा था कि—"आशा है कि सूरत की काँग्रेस में गर्म दल भी नर्म्मी का परिचय देगा, क्योंकि नागपुर की गम्मी ने काँग्रेस की सुन्दर सूरत में बहुत कुछ कलङ्क लगा दिया है। गर्म दल को विशेष अवसर पर नर्म होना ही उचित था। गर्मी का आधिक्य कभी उचित नहीं क्योंकि—

"जो खाल तिल से जियादा हुआ वह मसा हुआ।"

सो इस बार सूरत में उन्होंने अपनी गर्मी की इतिश्री कर दी। गर्म

में गर्मी का होना, तो स्वभाविक है, किन्तु परिताप का विषय तो यह है कि नर्म्म दल ने भी अपने धर्म के विरुद्ध कड़ाई और दिठाई का परिचय दे


  1. इकस्ट्रीमिस्ट पार्टी;
  2. माडरेट पार्टी