पृष्ठ:प्रेमघन सर्वस्व भाग 2.pdf/३४

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प्रेम घन सर्वस्व

विद्या और क्या नीति, शिल्प, कृषि, वाणिज्य, व्यापार, आदि सभी शिक्षा का श्रेष्ठ शिक्षक, कभी वह धर्मशास्त्री बन धर्म का मार्ग दिखाता, और मोलवी या पादरी हो दाढ़ी हिला हिला कर आवाज़ सुनाता कभी नाना विद्याओं के कथन से अपनी योग्यता प्रगटाता, कारीगरों को दूर दूर की अनोखी और विचित्र कारीगरियाँ जिन्हें वे नहीं जानते जनाता, कृषिकारों को कृषि कर्म, व्यापारियों को संसार भर के सौदे सुलफ के भाव और पड़ता तथा वाणिज्य की विधि बतलाता, विद्यार्थियों को विद्या, वकील मुख्तारों के लिए नियम और नीति के नवीन प्राशयों को प्रगट करता, राजाओं को राजनीति शिक्षा दान छोड़ गवर्नमेण्ट की इच्छा का प्रकाश, और गवर्नमेयट से प्रजा की दुर्दशा, अप्रसन्नता प्रगट करता है; हास्य प्रियजनों को हास्य, रसिकों को रस, कवियों को काव्य, सभ्यों को सभ्यता के लेख, कहाँ तक कहे कि समस्त मनुष्यों को उनके इच्छा के अनुसार रूप भर प्रसन्न ही करता है, सदा सब के उपकार के अर्थ शोच निमग्न होकर हित वचन सोच विचार कर कहा जाता है और अपने ऊपर आपत्ति सहकर भी उचित धर्म का परित्याग नहीं करता। जिस बात को कोई भी नहीं कहता उसे ये कह ही डालता और किसी के ग्राम सन्देश और इच्छा को संसार से भी कह कर उसके नाम को गुप्त रखते हैं, कहाँ तक कहें ये सदा सबको नई बात सुनाते सिखाते और जताते हैं।

श्रावण १९३८ वै॰ आ॰ का॰