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नेशनल कांग्रेस की दशा

इसका कुछ भी विचार न हुआ कि नये से पुराना सदैव हारता ही है। क्योंकि नवीन का उत्साह और बल नवीन और पुराने का पुराना होता है। यद्यपि नयों में उन्माद और अत्याचार का होना स्वाभाविक है; किन्तु इस बार तो जो साहस और अनाचार की पराकाष्ठा उनकी ओर से दिखलाई गई, वह नितान्त लज्जास्पद और शोकजनक है। उसी प्रकार नर्म दल ने अपनी योग्यता और आत्म संयम को न दिखला कर उसे अधिक उच्छङ्खल होने का अवसर दिया, यह भी कुछ न्यून परिताप का विषय नहीं।

नर्म दल की कठिनता और आशंकायें सर्वथा उपेक्षा के योग्य नहीं क्योंकि देश की वर्तमान राजनीतिक दशा और उसकी भयावनी स्थिति अवश्य ही उसे बाध्य करती है कि वह यथा शक्ति कांग्रेस को नवीनदल के अति उम्र सिद्धान्तों का समर्थक होने से बचाये और उसे सर्वथा गर्म दल मुक्त हो जाने से रोके। किन्तु यह उसकी शक्ति से अब परे है, क्योंकि कठिन दण्ड विधान और भय प्रदर्शन कर जिसे गवर्नमेंट नहीं दबा सकती है, तो नर्म्म दल जो वास्तव में सब प्रकार से नर्म्म है, उसे कैसे दबा सकता है। अवश्य ही प्रधान साम्राज्याधिकारी इस समय वास्तविक उदार नीति के सहारे उसे सहज ही निर्मूल कर सकते हैं, परन्तु उन्हें तो अभी सावन की हरियाली ही दिखाई पड़ रही है, जो देश और राज्य दोनों के दुर्निवार्य दुर्भाग्य का कारण है। क्योंकि यदि उनकी ऐसी ही संकुचित नीति बनी रही, तो दो ही चार वर्ष में न केवल कांग्रेस वाले ही, वरञ्च अधिकांश भारतीय प्रजा गर्म ही दल की सिद्धान्तावलम्बी दिखाई पड़ेगी और केवल प्रभात नक्षत्रों की भाँति कहीं कोई नर्म नीति वाला दूढ़ने से मिले तो मिले, क्योंकि वह शिशिर शीत की रीति क्षीणोन्मुख और गर्म वृद्धिङ्गत है। सब नर्म दल का अब केवल एक यही कर्तव्य शेष समझ पड़ता है कि वह गर्म्मों से मिला हुआ यथा शक्ति उसकी उम्र गति को कुछ धीमी किये रहे और देश की बढ़ती हुई विरुद्ध सम्मति के पारे की गर्मी की सूचना गवर्नमेंट को देती उसके शमनोपाय की प्रार्थना करती रहे। वह अपने उद्दण्ड छोटे भाई को समझा कर कुछ कष्ट सहकर भी मिलाये रखने का यत्न करे, न अलग कर सम्बन्ध ही तोड़ देने का, क्योंकि अलग अलग होने से तो उभय पक्ष में किसी के भी मङ्गल की आशा नहीं है।

जो लोग बहुत दिनों से बिना प्रतिद्वन्दी के अपने निश्चित सिद्धान्तानुसार शान्त और स्वतन्त्र रीति से कार्य करते चले आये हैं उन्हें अपने