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प्रेमघन सर्वस्व

उस समय क्षमा कर उचित अवसर पर पुनः उन सब अन्यायों का आख्यान कर आगे के अर्थ तीव्र प्रतिवाद और अपने उद्देश्य के साधनार्थ यत्न करना उचित था। अन्तरङ्ग सभा में अपनी शक्ति बढ़ाने और अपने दल की वृद्धि की चेष्टा करनी चाहिये थी। महासभा में साधारण प्रतिनिधियों से जो आगे अपील करनी थी, उसे वे पीछे से भी कर सकते थे। किन्तु काँग्रेस को बन्द करके उन्होंने क्या लाभ उठाया? अपनी अलग सभा कर वे अपने ऐसे प्रस्तावों को महासभा में परास्त हो कर भी पास कर सकते थे, जो उन्हें विशेष इष्ट होते। उन्हें अभी दो एक वर्ष और भी धैर्य धारण करके विपक्ष का अन्याय दिखाना था। यदि यह असह्य था, तो महासभा के अन्त में अपने पार्थक्य की सूचना कर अगामि से मनमाना प्रबन्ध करना था; किन्तु इस प्रकार अपने अधैर्य और अविवेक, ईर्ष्या वा द्रोह का परिचय कदापि नहीं देना था। सारांश काँग्रेस की हत्या मि॰ तिलक के हाथों से कदापि नहीं होनी चाहिये, जिसको सभापति बनाने के अर्थ देश का एक बृहत्समुदाय सम्मति दे रहा था। कितने ही लोग इसी पद के न प्राप्त होने से इस हर्षाग्नि और दुराग्रह का प्रादुर्भाव बतलाते है, कि यदि हम न हुये तो लाला लाजपति राय हों अथवा कोई दूसरा, परन्तु माडरेटों के चुने डाक्टर घोष कैसे हों। जो हो, किन्तु हम इसको स्वीकार न कर इसे केवल भारत के दुर्भाग्य ही का फल मानते हैं।

क्योंकि हमारे भारत सौभाग्य नाटक में ईब्लीसुलमलऊन बदहकवाले हिंद के जो अन्तिम आक्रमण की कथा वर्णित है, कदाचित् सूरत में उसी की सूरत दिखलाई पड़ी है। जिस फूट का उसने बेसहारे फिरना कहा है सूरत में न केवल उसे पूरा सहारा मिला वरञ्च उसका राज्याभिषेक सा हुआ है। यथा—

बद॰—क्या कहूँ? कि कैसी कुछ आफत आन पड़ी है।
और इसमें शक नहीं कि, यह मुहिम सब से बड़ी है॥
काम आकर तमाम हो गये, सब सिपाह व सर्दार।
अब तो बच रहे हैं, सिर्फ वही [१]रेजीडेण्ट चार॥
जिनमें सब से जियाद सब, एक अज़ीज़ मिस्ले पिसर।
लिखता है अपने खत में, मुझे यों कि जल्दतर॥


  1. चारों प्रान्तो के मुख्य ऐङ्गलो इन्डियन समाचार पत्र।