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नेशनल कांग्रेस की दुर्दशा


बन्दोबस्त पुरतः करें कोई, अब ऐसा बन्द गाने हुजूर!
जोकि हो जाय किसी तरह, अभी से यह शक दूर॥
नहीं पीछे हाथ मल मल, कर पछताना होगा।
और मुफ़्त में बहुत कुछ, रञ्जन भी उटाना होगा॥
बस, क्या करूँ? अब, कुछ नहीं कहा जाता है।
और वेशक आसार, बुरा ही नज़र आता है॥
काम आ गये थे कब के, लूट-लाट और तोड़-ताड़।
योंही मर गये थे मार-काट, और नीज़ फूंक-फाड़॥
खत्म हुई मलिकः जेहालत, भी जाकर वहीं।
नब्बाव ग़दउदैला भी अब, दुनियाँ पर बाकी नहीं॥
बेपरवाई उर्फ ईज़ का भो, हुआ सख्त बुरा हाल।
काहिली उर्फ आदर आईडिल्नेस्, ने तो किया इन्तेकाल॥
अय्याशी उर्फ लक्षरी भी, अब तो मरा चाहती।
कमहिम्मती उर्फ कार्डिस्, भी है भगा चाहती॥
मजबूरी भी मजबूर होकर, रह सकती है कहाँ।
बेकारी की भी अब कुछ, नहीं चल सकती है वहाँ॥
विचारे बैर और कलह भी, गये जान से मारे।
अफ़सोस कि अब फूट, भी फिर रहा है वे सहारे॥
वे अख्तियार भी बस, हो गया बिल्कुल वे अख्तियार।
आते ही हैं वह सब भी, होकर तंग व लाचार॥
बी होता जाता है, यह ज़लील हिन्दोस्तान।
बल्कि जमा भी कर ली, एक फ़ौजे अलीशान॥
बस जलदी हो अब, सामाने जङ्ग को तय्यारी।
क्योंकि अब अपनी ही, चढ़ाई की भी है वारी॥
अँगरेजी हुकूमत में तो, योंही न जमता था रंग।
तिसपर एक खबर और भी, सुनी है बहुत ही बेढंग॥
कि—हो रहा है नेश्नल; काँग्रेस मदरास में आजकल।
बस चल के अब डालें, कोई ऐसा रखना और खलल॥
जिसमें खतम हो जाये यही से इस दास्तान का बयान।
और जहन्नुम रसीद हो, फौरन यह हिन्दोस्तान॥
हालां कि मेरा एकलौता, लड़का भी आगे ही गया है।