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प्रेमघन सर्वस्व

और फौजे दुश्मन में फोड़फाड़, भी खूब लगा रहा है॥
मगर अब मुझे भी बहुत ही, जल्द वहाँ चलना चाहिये।
और सब काम सोच, समझ कर करना चाहिये॥

निदान काँग्रेस टूट गई, इसके लिखते लेखनी कम्पित होती है। सुनने के अर्थ श्रवण सन्नद्ध नहीं होते सुन कर, वरञ्च वास्तव में टूट जाने पर भी जिसे चित विश्वास करने पर तत्पर नहीं होता। किन्तु हाय भारत के भाग्यहीन सन्तानों ने इस परम अनिष्ट कृत्य को करी डाला। जिस कारण आज समस्त भारत लज्जित और शोकमूर्छित हुआ है। और उसके बैरी आनन्द उदधि उलिचते उसका उपहास करते, भाँति भाँति के व्यंग की बौछार छोड़ते हँस हँस कर कहने लगे हैं कि—"जो लोग अपनी जातीय सभा में शान्ति पूर्वक दो दलों के परस्पर मतभेद को नहीं मिटा सकते अथवा जो दो भाइयों में भी एकता को नहीं स्थिर रख सकते, वे इतने बड़े देश के जिसमें भाँति भाँति के भिन्न धर्मी तथा सैकड़ों जाति के मनुष्य बसते हैं, स्वराज्य सञ्चालन के योग्य अपने को कहते क्या कुछ भी लज्जित नहीं होते? भारत सचिव मिस्टर मार्ली महाशय आदि का यह कहना कि—यदि हम अँगरेज आज भारत का शासन छोड़ दें, तो कदाचित् वहाँ एक सप्ताह पर्यन्त भी शान्ति न रह सकेगी—क्या मिथ्या है? तथापि कुछ लोगों की सम्मति इसके सर्वथा विपरीत है।" उनका कथन है कि—"मत की विभिन्नता तो प्रायः स्वभाविक है, किसी सभ्य देश में देखियेगा तो राजनैतिक विषय में केवल एक ही मत के सब लोग न होंगे, वरञ्च भिन्न भिन्न मत के कई दल देखे जायेंगे। औरों की बातें जाने दीजिये, वृटिश पार्लियामेण्ट ही मैं कई दल है; जिनमें ऐसे झगड़ों में प्रायः ऐसे ही दृश्य देखे जाते हैं। बिना विरोधी दल के कोई प्रजा समूह वा देश उन्नति नहीं कर सकता। सुतराम यह तो हमारे देश की जाति का लक्षण वा उसमें प्रजातन्त्र के भाव का प्रमाण है। अब परस्पर की विजिगीषा के कारण दोनों दल जीतोड़ परिश्रम करेंगे और देश की शीघ्र सौभाग्य वृद्धि होगी। जब दोनों दलों के उद्देश्य एक हैं तो उनके साधन क्रम में कुछ कुछ मतान्तर होने से विशेष चिन्ता की बात नहीं है। जहाँ चार घड़े रक्खे जाते है तहाँ कुछ न कुछ खटपट तो होती ही है। आज यदि लोग अलग हो गये हैं, तो कल फिर मिलकर एक हो जायेंगे।