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कजली की कुछ व्याख्या

होता। ऐसी छिपी-छिपी कहानियाँ कह डालती कि प्रायः बड़े बड़े घरों के छिपे भेद सुन कर लोग चकित और चौकन्ने हो जाते! कभी-कभी किसी जन विशेष का उपहास कर ऐसा लज्जित कर देती, कि उन्हें डूब मरने को संसार में चुल्लू भर पानी मिलना मुश्किल हो जाता। इसी प्रकार कभी व्यतीत वर्ष से लेकर सौ वर्ष तक का भी इतिहास सुनाती, मुवरिख बन जातीं; जो यहां प्रति वर्ष देखने में आता है, कि प्रायः विगत वर्ष की किसी विशेष वा प्रसिद्ध विषय की कजली अवश्य ही सुनने में आती। कभी जो बन्दी जन बन किसी की कीर्ति गाती, तो कभी व्यास बन पुरानी प्रयोजनीय वृत्तान्तों की कथा कह सुनाती हैं। यथा,—

धर्म

सुमिरौ मैहर के भवानी तूं पति पानी राखः मोर।

अथवा

देवी झूलैली हिंडोरबा दुर्गा खेल कजरी। इत्यादि।

आचार

यठियन के ठैयां भुंयाँ धरम तोहार लोय॥

ढुनमुनियां खेल के प्रारम्भ में इसको गाकर मानो वे पृथिवी देवी जिसपर खेल कूद होता उसकी वंदना करती और निज विनोद क्रीड़ा के अर्थ क्षमा प्रार्थना करतीं। योही,—

खेलावै मोके हिंदुनी, मैं खेलै न जानौ हिंदुनी।

जान पड़ता है। कि मुसल्मानी स्त्रियों के साथ खेलने के विषय पर इसकी रचना हुई है। कदाचित् स्वयम् अपने अपने पति के नाम बतलाने पर यवनियों ने हिन्दू स्त्रियों के साथ कजली खेलना स्वीकार किया था। यों हिन्दुनियों के धर्म का एक बड़ा कड़ा नियम तुड़वा कर तब मुसल्मानिनी ने उनके उत्सव में सम्मिलित होकर कजली खेला और अपना धार्मिक नियम भग किया; क्योंकि इसको गाकर नीच जाति की हिन्दू स्त्रियाँ अपने अपने पति का नाम लेती और कजली का खेल समाप्त करती हैं।

उपालम्भ

कबने चिकन मुहँवा से वियाह्यः भैय्या बिरनू।
भितरों के हलियः न जान्यः भैय्या विदरन।