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प्रेमघन सर्वस्व

बहिन अपने अयोग्य विवाह का उलाहना देती, भाई से निज सुसराल की दुर्दशा बतलाती, कि—तुम लोग केवल ऊपर ही की तड़क-भड़क देखकर भूल गये, भीतर का हाल कुछ न जाना, कि चूहे नित्य ही व्रत करते हैं।

निन्दा

यहि रे मिरजापुरवा म कैसे बचै पानी। मारि के देवाला सारे करें बेहमानी॥

मिस्ट्री

तोरो रमकलिया रमिगै रे राँघड! केहू रमता के साथ।

उपहास

ह॰ २ भंगिनियाँ के संगवाँ संगी भैल्यः रे हरी!

शोक

मिलल बलम सौकीन रे बुँदेलवा॥
अपना तो चाभै पूरी कचौरी, हमके बना नमकीन रे बुँदेलवा

विरद

दसमी राम नगर के जाहिर, कजरी मिरजाधुर सरनाम॥
राम नगर में कासी कै राजा, मिरजापुर जयराम॥

श्रीमान् महन्त श्री जयराम गिर जी महाराज कि जो इस नगर के एक बहुत ही बड़े अमीर मिज़ाज रईस और महाजन थे इस मेले को बहुत बड़ी रौनक दी थी। अाज तक भी कजली का अन्तिम मेला इन्हीं के शिवाले वाले वाश के फाटक पर लगता है।

अथवा

कासीभोला कै पोखरवा बनिग बड़ा मजेदार!

स्थानिक गुण्डों की वीरता

बूटी बैठा रगड़ें डोलहा राम नरायन गुण्डा रामा
ह॰ २ नारघाट पर कै दिहेन नबबिया रे हरी।
बिन्ध्याचल में झारेस गुण्डा तेगा और गँडासा रा॰
अष्टभुजा पर छोड़ेस कड़ाबिनिया रे हरी॥

अथवा

नबो गैल जहलखनंबां कै कय तेलियागञ्ज उजार।

माशूकि जमाना

दखिया अँखियाँ तोरि कटीली देखि कै फाटे छतिवा॥