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प्रेमघन सर्वस्व

उन्हे पूजैगी, वे सब पापों से छूटकर सुख सौभाग्य और पति पुत्र से समन्वित चिरजीविनी हागी।"

इसी भाति जयद्रथ तन्त्र मे यह कहा गया है कि भाद्रपद कृ॰२[१] के संध्या समय—जिस रात को यहां रतजगा होता है—तारा देवी का जन्म[२] हुआ था। कोई कहते हैं कि इनका सम्बन्ध विंध्यवासिनी देवी के जन्म से है। जैसा कि काशी परमपद प्राप्त पूज्यनीय, महात्मा असाधारण विद्वान् और कवि स्वामी देवतीर्थ 'काष्ठजीह्व' 'देव' का कथन है—

स्यामसुधा मलार

'श्री जसुदा के गर्म आय गोकुल मेज्ञ कन्या प्रकट भई।
अति प्रसन्न मुख श्याम अस्त तन कंचन दामिनि कीर्ति भी॥
"भादो बदी दुइज गुरूसतमिख साझा समय' सुकर्ण भई।
कस विस्तार करने को मानौ आदि संक्रमित विधि वेलि भई॥
सतायें दिन मथुरा में आई पद भी कस उठाए लई।
अग्नि पलीता छुवत वान ज्या चमकाते ठनकत गगन गई॥


  1. कृष्णे (शुक्ले) भाद्रपदस्यैवं तृतीयायां समर्चयेत्।
    र्स्वाधान्यैस्तां विरूदा भूतां हरितशाढालम्॥
    हरिकाली देवदेवा गौरा शङ्करवल्लभाम्।
    गन्धे पुष्पै फलैर्बूंपैनैवेद्य मोदकादिभि॥
    पीए यित्वा समाछाद्य पद्मरागेण वाससा।
    घण्टावाद्यादिभिगोते शुभैर्दिव्य कथानुगैः॥
    कृत्वा जागरण रात्रौ प्रभाते ह्युदगते रवौ।
    सुवासिनोभि सानेया मन्ये पुण्य जलाशये॥
    तस्मिन् विसर्जये पार्थ हरिकाली हरिप्रियाम्।
    इत्ये समपूज्य ता देवी दत्वा विप्राय दक्षिणाम्॥
    ता च प्रातर्ज्जले रम्ये मन्त्रेणैव विसर्जयेत॥
    अर्चिताऽसिमयाभक्तया गच्छदेवि सुरालयम्।
    मम दौर्भाग्यनाशाय पुनरागमनाय च॥

  2. पल्लान्तरे महेशानि विषये नन्दगोकुले।
    भाद्रकृष्णाद्वितीयाया सायकाले महेश्वरी॥
    प्रादुर्बभूव सा तारा राजराजेश्वरी कला।

    नन्दगोपकुले जाता यशोदागर्भसम्भवा
    ततस्तौनाशयिष्यामि विन्ध्याचल निवासिनी॥

    मार्कण्डेय पुराणे।